भोपाल लोकसभा सीट से ‘अरूण बनाम आलोक’ यहां जानें, क्या कहते हैं समीकरण

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चित्र : लोकसभा चुनाव 2024 में भोपाल संसदीय क्षेत्र के प्रत्याशी अरूण श्रीवास्तव (कांग्रेस) और आलोक शर्मा (बीजेपी)।

भोपाल। साल था 2019, लोकसभा चुनाव का ये साल उस वक्त चर्चा में रहा। वजह थी मालेगांव ब्लास्ट में कथित तौर पर आरोपी प्रज्ञा ठाकुर, जिन्हें उस वक्त बीजेपी ने चुनावी मैदान में उतारा। भोपाल संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह का नाम पेश किया। जीत बीजेपी की हुई और प्रज्ञा ठाकुर सांसद बन गईं। जब प्रज्ञा सांसद बनीं तो वो अपने विवादास्पद बोल पर देश भर में चर्चा का केंद्र रहीं। विवाद का कारण थे नाथूराम गोडसे और शहीद हेमंत किरकिरे पर की गई टिप्पणी।

बात यहां तक जा पहुंची की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहां, वो उन्हें माफ नहीं कर पाएंगे। इस तरह कब 5 साल वो सांसद रहीं। उन्होंने विकास के नाम पर क्या किया? क्या नहीं किया? इस बात को भोपाल संसदीय क्षेत्र की जनता बेहतर तरह से जानती है।

लेकिन इस बार भोपाल लोकसभा सीट का गणित कुछ ओर ही कहता है। कांग्रेस द्वारा अरुण श्रीवास्तव को मौका दिया है तो बीजेपी ने आलोक शर्मा को। अरुण श्रीवास्तव, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाते हैं।

मध्य प्रदेश कांग्रेस (पीसीसी) से जुड़े हमारे सूत्रों के मुताबिक, ‘पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने कांग्रेस नेता दिग्विजय से चर्चा के बाद अरुण को टिकट दिया है।’ कांग्रेस यहां जातिगत राजनीति का दांव खेल रही हैं क्योंकि अरूण, कायस्थ समुदाय से आते हैं। भोपाल संसदीय क्षेत्र में कायस्थ समाज के वोट बड़ी संख्या में हैं।

अरुण श्रीवास्तव का समाज के मतदाताओं के बीच अच्छा प्रभाव माना जाता है। हालही में यानी 23 मार्च 2024 की शाम को कांग्रेस ने अरुण श्रीवास्तव की जगह अनोखी पटेल को भोपाल ग्रामीण कांग्रेस का जिला अध्यक्ष नियुक्त किया था।

इसके बाद से अरुण श्रीवास्तव का टिकट फाइनल माना जा रहा था। इसके कुछ घंटे बाद रात 11 बजे एआईसीसी ने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी। अरुण श्रीवास्तव के साथ ही भोपाल लोकसभा सीट पर यह लगातार चौथा मुकाबला होगा, जब कांग्रेस ने यहां से किसी नए उम्मीदवार को टिकट दिया है।

इससे पहले, कांग्रेस ने 2019 में भोपाल से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, 2014 में पीसी शर्मा और 2009 में सुरेंद्र सिंह ठाकुर को मैदान में उतारा था। सूत्र ये भी दावा करते हैं कि राजनीतिक क्षेत्र में अरुण की एकमात्र उपस्थिति यह है कि उनकी मां लगभग 25 साल पहले जिला पंचायत अध्यक्ष थीं। हालांकि 2003 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से अरुण श्रीवास्तव सक्रिय राजनीति में नजर नहीं आए।

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