
स्कूल में पढ़ाई का स्तर, शिक्षकों की शैक्षिक क्षमता और बुनियादी ढांचे की हालत को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। घटती छात्राओं की संख्या, जर्जर भवन और मिड-डे मील से जुड़ी शिकायतों ने अभिभावकों की चिंता बढ़ा दी है।
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, इस विद्यालय पर हर महीने लगभग 16 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं। औसतन प्रति छात्रा करीब 8 हजार रुपये मासिक व्यय होता है। इसके बावजूद शिक्षा की गुणवत्ता और स्कूल का माहौल अपेक्षित स्तर पर नहीं पहुंच पा रहा है। यही वजह है कि कभी 800 से अधिक छात्राओं वाला यह स्कूल अब सिमटकर करीब 200 छात्राओं तक रह गया है।
विद्यालय की इमारत की हालत भी चिंताजनक बताई जा रही है। दीवारों में दरारें, जर्जर संरचना और सुरक्षा के अभाव ने छात्राओं में डर का माहौल पैदा कर दिया है। अभिभावकों का कहना है कि वे हर दिन किसी अनहोनी की आशंका में बच्चों को स्कूल भेजते हैं।
इसी बीच, आर्य कन्या इंटर कॉलेज की प्रिंसिपल माया कुमारी के शैक्षिक ज्ञान को लेकर भी गंभीर आरोप सामने आए हैं। बताया जा रहा है कि सरकार से हर माह करीब 1 लाख 15 हजार रुपये वेतन पाने के बावजूद वे बुनियादी शैक्षिक सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाईं। कैमरे पर पूछे गए सामान्य प्रश्नों में अंग्रेजी के साधारण शब्दों की स्पेलिंग, हिंदी की मात्राएं और मूल भाषा ज्ञान में उनकी कमजोरी सामने आई। उनके द्वारा लिखे गए आधिकारिक पत्रों में भी व्याकरण और भाषा संबंधी कई त्रुटियां पाई गई हैं।
केवल प्रिंसिपल ही नहीं, बल्कि विद्यालय की विज्ञान शिक्षिका रीता गौतम के विषयगत ज्ञान पर भी सवाल खड़े हुए हैं। विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषय की शिक्षिका से जब विषय की सामान्य जानकारी पूछी गई तो वे जवाब देने में असहज नजर आईं। यहां तक कि विज्ञान की स्पेलिंग और राष्ट्रगान से जुड़े साधारण प्रश्नों पर भी वे स्पष्ट उत्तर नहीं दे सकीं।
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि शिक्षकों और प्रबंधन की इस तरह की कमजोरियां सीधे तौर पर बच्चों की पढ़ाई और स्कूल की साख को प्रभावित करती हैं। आर्य कन्या इंटर कॉलेज का मौजूदा हाल इस बात का संकेत है कि यदि समय रहते सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर से लोगों का भरोसा और कमजोर हो सकता है।




