बिहार विधानसभा चुनाव के बीच अब समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव भी मैदान में उतरने जा रहे हैं। 3 नवंबर से अखिलेश यादव सीमावर्ती जिलों — सिवान, कैमूर और पूर्वी चंपारण — में बतौर स्टार प्रचारक चुनावी रैलियों की शुरुआत करेंगे। यह पहली बार होगा जब अखिलेश यादव सीधे तौर पर बिहार की सियासत में इस तरह सक्रिय भूमिका निभाएंगे, जबकि समाजवादी पार्टी न तो महागठबंधन में शामिल है और न ही उसे कोई सीट मिली है।
ओसामा के समर्थन में प्रचार करेंगे अखिलेश
राजनीतिक गलियारों में इस कदम को लेकर कई तरह की अटकलें हैं। सबसे बड़ी चर्चा सिवान की रघुनाथपुर सीट को लेकर है, जहां राजद प्रत्याशी और पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा मैदान में हैं। अखिलेश यादव इस सीट पर जाकर ओसामा के समर्थन में प्रचार करेंगे। यह फैसला सोशल मीडिया पर तीखी बहस का कारण बना हुआ है। शहाबुद्दीन कभी सिवान की राजनीति के सबसे प्रभावशाली और विवादास्पद चेहरों में से रहे हैं — उनकी छवि एक तरफ ‘रॉबिनहुड’ जैसी बताई जाती थी, तो दूसरी ओर उनके खिलाफ कई गंभीर आपराधिक मामले भी दर्ज रहे।
बिहार चुनाव में सीटों की मांग
समाजवादी पार्टी ने बिहार चुनाव में सीटों की मांग न करने का फैसला लेकर साफ किया है कि उसका मकसद फिलहाल सत्ता नहीं बल्कि संदेश देना है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अखिलेश यादव की रैलियों का मकसद सीमावर्ती इलाकों, खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के मतदाताओं तक एक राजनीतिक संकेत भेजना है। एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण वाले क्षेत्रों में सक्रियता बढ़ाकर अखिलेश 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए सामाजिक आधार मजबूत करना चाहते हैं।
यूपी की सियासत पर असर
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, अखिलेश का यह कदम केवल बिहार के संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए। वे एक व्यापक विपक्षी एकता की कोशिश में हैं और यह दिखाना चाहते हैं कि समाजवादी पार्टी क्षेत्रीय सीमाओं से परे भी प्रभाव रखती है। दूसरी ओर, भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए भी बिहार में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है। ऐसे में अखिलेश यादव का सीमापार प्रचार यूपी की सियासत पर भी असर डाल सकता है।
अखिलेश का बिहार मिशन
बिहार के चुनावी मैदान में यह नया मोर्चा अब न केवल वहां के मतदाताओं बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए भी दिलचस्प संकेत दे रहा है। आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि अखिलेश यादव का यह “बिहार मिशन” सिर्फ सहयोगी दलों के समर्थन का प्रतीक है या फिर 2027 की बड़ी सियासी रणनीति का शुरुआती ऐलान।


