याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित करने वाली गंभीर बीमारी अल्जाइमर अब शुरुआती अवस्था में ही पकड़ में आ सकेगी। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के रेडियोडायग्नोसिस विभाग ने एआई (Artificial Intelligence) आधारित एमआरआई जांच की शुरुआत की है, जिससे अल्जाइमर रोग को शुरुआती स्तर पर पहचानना संभव हो गया है।
कैसे काम करती है यह जांच?
रेडियोडायग्नोसिस विभाग के प्रो. दुर्गेश कुमार द्विवेदी और मानसिक स्वास्थ्य विभाग के प्रो. शैलेंद्र एम. त्रिपाठी ने इस तकनीक को शुरू किया है।
- जांच में मस्तिष्क के उन बेहद छोटे बदलावों पर ध्यान दिया जाता है, जिन्हें सामान्य स्कैनिंग में पहचानना मुश्किल होता है।
- खासतौर पर हिप्पोकैंपस, जो स्मृति को नियंत्रित करता है, और मस्तिष्क का वायरिंग कनेक्शन, जो संदेश पहुंचाता है—ये दोनों क्षेत्र अल्जाइमर में सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
- एआई इन बदलावों को बेहद शुरुआती अवस्था में पकड़ लेता है, जिससे समय रहते इलाज शुरू किया जा सकता है।
क्यों है एआई अहम?
प्रो. द्विवेदी के मुताबिक, डीप लर्निंग और एआई स्कैन में मौजूद उन पैटर्न्स को भी पकड़ लेता है, जिन्हें इंसानी आंखें नहीं देख पातीं।
इससे डॉक्टर यह समझ पाते हैं कि कुछ मरीजों की हालत तेजी से क्यों बिगड़ती है जबकि दूसरों में बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है।
शुरुआती पहचान होने पर मरीज के लिए व्यक्तिगत देखभाल और उपचार की रणनीति पहले ही तैयार की जा सकती है।
देश में तेजी से बढ़ रहे अल्जाइमर मरीज
- भारत में इस समय करीब 7.4% लोग अल्जाइमर से प्रभावित हैं।
- यह बीमारी आमतौर पर 65 वर्ष की आयु के बाद शुरू होती है।
- बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ने के कारण आने वाले वर्षों में यह चुनौती और गंभीर हो सकती है।
- अभी तक अल्जाइमर का कोई स्थायी इलाज नहीं है, वर्तमान उपचार केवल इसकी प्रगति को धीमा करने में मदद करते हैं।
क्या कहती है विशेषज्ञों की राय?
चिकित्सकों का मानना है कि एआई आधारित एमआरआई जांच मरीजों और उनके परिवारों के लिए उम्मीद की नई किरण है। शुरुआती पहचान होने पर जहां इलाज ज्यादा असरदार हो सकता है, वहीं बीमारी को बढ़ने से काफी हद तक रोका जा सकता है।