उत्तर प्रदेश सरकार ने जातीय भेदभाव रोकने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाया है। अब पुलिस रिकॉर्ड, नोटिस बोर्ड और गिरफ्तारी मेमो में आरोपी की जाति दर्ज नहीं होगी। यही नहीं, वाहनों पर जाति लिखकर घूमने वालों का चालान किया जाएगा और जातीय रैलियों पर भी प्रतिबंध रहेगा। कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने शनिवार को आदेश जारी करते हुए कहा कि समाज में जातीय विभाजन को बढ़ावा देने वाली किसी भी प्रवृत्ति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया निर्देश के बाद लागू किया गया है।
क्या-क्या बदल जाएगा?
- FIR और पुलिस रिकॉर्ड में बदलाव
- अब किसी भी आरोपी की जाति नहीं लिखी जाएगी।
- गिरफ्तारी मेमो और बरामदगी रिपोर्ट से भी जाति का जिक्र हटा दिया जाएगा।
- आरोपी के पिता के नाम के साथ अब माता का नाम भी दर्ज किया जाएगा।
- सोशल मीडिया पर भी निगरानी
- जाति को बढ़ावा देने या जातिगत निंदा करने वाले पोस्ट करने पर FIR दर्ज होगी।
- केवल उन्हीं मामलों में जाति का जिक्र होगा, जहां कानूनन ज़रूरी है, जैसे SC/ST एक्ट के तहत दर्ज केस।
- वाहनों पर लगे जातीय स्लोगन हटेंगे
- “जाट हूं”, “ठाकुर साहब”, “पंडित जी” जैसे स्टिकर लगे वाहनों का चालान होगा।
- पुलिस को सभी ऐसे स्टिकर और नारे हटाने के निर्देश दिए गए हैं।
- जातिगत बोर्ड और बैनर पर रोक
- कस्बों और शहरों में लगे जाति विशेष का महिमामंडन करने वाले बोर्ड हटाए जाएंगे।
- आगे से ऐसे बोर्ड लगाने पर कड़ी कार्रवाई होगी।
हाईकोर्ट क्यों नाराज़ हुआ?
यह मामला इटावा के जसवंतनगर थाने से जुड़ा है। 29 अप्रैल 2023 को पुलिस ने एक स्कॉर्पियो से 106 बोतल अवैध शराब बरामद की थी। बरामदगी मेमो में आरोपियों की जाति (माली, ठाकुर, पहाड़ी राजपूत) लिखी गई थी। बाद में दूसरी गाड़ी से भी 254 बोतल शराब बरामद हुई और वहां भी मालिक की जाति दर्ज की गई। इस पर आरोपियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा—“FIR और पुलिस रिकॉर्ड में जाति लिखना संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ है। यह प्रोफाइलिंग लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती है।” इसके बाद कोर्ट ने आदेश दिया कि पुलिस रिकॉर्ड और सार्वजनिक जगहों से जातिगत पहचान खत्म की जाए। साथ ही, युवाओं में जातिवाद विरोधी जागरूकता फैलाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने और शिकायत के लिए पोर्टल/मोबाइल ऐप बनाने का सुझाव भी दिया।
क्यों है अहम फैसला?
यूपी में अक्सर वाहनों पर जाति-विशेष लिखे स्लोगन, बैनर और रैलियां देखने को मिलती रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार का यह कदम जातीय विभाजन रोकने और सामाजिक समरसता बढ़ाने की दिशा में बड़ा बदलाव साबित हो सकता है।