चित्र : कच्चातीवु द्वीप।
नई दिल्ली। श्रीलंका ने कच्चातीवु द्वीप पर अपना नियंत्रण जताते हुए कहा है कि निर्जन द्वीप है, जिसने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस के बीच तनाव को जन्म दिया है। श्रीलंका के मंत्री जीवन थोंडमन ने कहा कि यह द्वीप उनके अधिकार क्षेत्र में आता है, भारत सरकार की ओर से कोई आधिकारिक संचार नहीं किया गया है, जो द्वीप राष्ट्र के साथ ‘स्वस्थ और जैविक’ विदेश नीति साझा करता है।
तो वहीं, मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि तमिलनाडु बीजेपी प्रमुख के अन्नामलाई ने दावा किया है कि भारत इस द्वीप को फिर से हासिल करने की तैयारी कर रहा है।
अन्नामलाई ने संवाददाताओं से कहा, ‘तमिलनाडु के दिवंगत सीएम करुणानिधि की सहमति से कच्चातीवू को श्रीलंका को दे दिया गया था। उन्होंने पूर्व विदेश मंत्री केवल सिंह से बात की थी। अब बीजेपी ने कच्चातीवू को वापस लेने के लिए विदेश मंत्री जयशंकर को एक पत्र दिया है।’ इसे भारत वापस लाया जाना चाहिए, यह हमारा रुख है। केंद्र सरकार मछुआरों की सुरक्षा के लिए कच्चातीवु को वापस लाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है।’
भारत से कोई संदेश नहीं मिला : श्रीलंका
बता दें कि श्रीलंका के मंत्री का कच्चातीवु द्वीप पर दावा, विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा पीएम नरेंद्र मोदी के विपक्ष के खिलाफ आरोप को दोहराने के एक दिन बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस ने 1974 में कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को ‘बेरहमी’ से दे दिया था।
जीवन थोंडमन ने भारत के एक अंग्रेजी अखबार से कहा, श्रीलंका को कच्चातीवु द्वीप पर उसके दावे के संबंध में ‘भारत से कोई संदेश नहीं मिला है’ और यदि ऐसा होता है, तो विदेश मंत्रालय जवाब देगा।
जीवन थोंडमन के हवाले से अखबार लिखता है, ‘जहां तक श्रीलंका का सवाल है, कच्चातीवु द्वीप श्रीलंका की नियंत्रण रेखा के अंतर्गत आता है। अभी तक कच्चातीवु द्वीप की शक्तियां लौटाने के लिए भारत की ओर से कोई आधिकारिक संचार नहीं हुआ है। अगर ऐसा कोई संचार होता है, तो विदेश मंत्रालय उसका जवाब देगा।’
क्या है कच्चाथीवु द्वीप विवाद
कच्चातीवु एक निर्जन द्वीप है, जो 1974 तक विवादित रहा जब श्रीलंका और भारत ने इसे अपने क्षेत्र के रूप में मान्यता दी। कच्चातीवु द्वीप पर विवाद तब शुरू हुआ जब पीएम नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि 1974 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने इसे श्रीलंका की संप्रभुता के रूप में मान्यता देकर ‘बेरहमी से’ द्वीप को दे दिया। पीएम मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा, “आंखें खोलने वाला और चौंकाने वाला!
इस बीच भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर का कहना है, ‘उन्हें बस परवाह नहीं थी। हम 1958 और 1960 के बारे में बात कर रहे हैं। मामले में मुख्य लोग यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि कम से कम हमें मछली पकड़ने का अधिकार मिलना चाहिए। द्वीप 1974 में दिया गया था और मछली पकड़ने का अधिकार 1976 में दिया गया था।’
विपक्ष का पलटवार
सत्तारूढ़ बीजेपी ने कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया तो कांग्रेस ने पलटवार करते हुए दावा किया कि यह द्वीप श्रीलंका की तरफ है। जयराम रमेश ने 2015 का एक आरटीआई जवाब पेश किया जिसमें कहा गया था कि भारत-श्रीलंका समझौते में क्षेत्र का अधिग्रहण या हस्तांतरण शामिल नहीं था और यह द्वीप भारत-श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के श्रीलंका की तरफ है और उन्होंने जयशंकर पर 2015 में अपनी ही सरकार को दिए गए जवाब को ‘अस्वीकार’ करने के लिए हमला किया।