चित्र : कांग्रेस से बीजेपी में आए असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा।
नई दिल्ली। बीते साल में, केंद्रीय एजेंसियों की जांच के दायरे में आए विपक्षी पार्टी के ऐसे कई नेता जो किसी ने किसी वजह से भ्रष्टाचार या अन्य मामलों में लिप्त हैं। बीजेपी ज्वाइन कर रहे हैं। इधर वो बीजेपी ज्वाइन करते हैं उधर उन पर लगे आरोप को क्लीन चिट दे दी जाती है।
ये शुरूआत साल 2014 से शुरू होती है जब मोदी सरकार का पहला कार्यकाल शुरू हुआ। उस वक्त करीब 25 प्रमुख राजनेताओं ने 2014 में नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ज्वाइन की।
बीते इन साल में ऐसी कई मीडिया रिपोर्ट्स सामने आईं जो यह बताती है कि राजनीतिक दलबदलुओं की यह आमद, उनके कानूनी झगड़ों के समाधान के साथ मिलकर, जांच की निष्पक्षता और राजनीतिक परिदृश्य की अखंडता पर सवाल उठाती है।
साल 2022 एक अंग्रेजी अखबार ने खुलासा किया था कि 2014 के बाद केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा लक्षित किए गए अधिकांश राजनेता विपक्षी दलों के थे। इस पैटर्न ने सत्तारूढ़ बीजेपी पर राजनीतिक लाभ के लिए जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया है।
हाल की घटनाओं, जैसे कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जांचे गए भ्रष्टाचार के मामलों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी, के मद्देनजर जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता को लेकर चिंताएं और बढ़ गई हैं।
विशेष रूप से एनसीपी गुट के प्रमुख नेताओं अजीत पवार और प्रफुल्ल पटेल से जुड़े मामलों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें उनके बीजेपी में शामिल होने के बाद बंद कर दिया गया था। ऐसे मामले महाराष्ट्र में विशेष रूप से देखे गए हैं। जहां कई हाई-प्रोफाइल राजनेताओं ने इसी तरह के बदलाव किए हैं। तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बीजेपी के पास कोई वॉशिंग मशीन है जो भ्रष्ट नेताओं को बेदाग कर देती है। कांग्रेस ने इस बारे में सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट किया है कि…
उदाहरण के लिए, अजित पवार के मामले में घटनाक्रम में महत्वपूर्ण मोड़ आया: पिछली सरकार में उनके कार्यकाल के दौरान मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) द्वारा शुरू में इसे बंद कर दिया गया था, महाराष्ट्र में बीजेपी की सत्ता में वापसी के बाद इसे फिर से खोल दिया गया। हालांकि, बाद में पवार के एनडीए के साथ गठबंधन के बाद, मामला एक बार फिर बंद हो गया, जिससे उनके खिलाफ ईडी की कार्रवाई निरर्थक हो गई।
पश्चिम बंगाल में सुवेन्दु अधिकारी और असम में हेमंत बिस्वा सरमा जैसे नेताओं से जुड़े मामलों का भी उल्लेख किया गया है, जिन दोनों को चल रही जांच के बीच बीजेपी में शरण मिली हुई है।