रामलीला से निकला सियासी तीर! क्यों आचार्य प्रमोद के शब्द यूपी की राजनीति में ला सकते हैं नया मोड़?

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संभल में रामलीला मंचन के दौरान श्रीकल्कि धाम के पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम् ने न सिर्फ़ धार्मिक मंच से भक्ति का संदेश दिया, बल्कि अपने तीखे राजनीतिक बयानों से माहौल को गरमा दिया। आचार्य ने सीधे संभल के सांसद जियाउर्रहमान बर्क को ‘रावण’ करार दिया और साफ चेतावनी दी कि “यदि कोई दंगा भड़काएगा तो बुलडोजर भी चलेगा और तोपें भी चलेंगी।” उन्होंने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की तुलना अर्जुन से करते हुए कहा कि उन्हें अभिमन्यु न समझें। यह बयान अपने आप में प्रतीकात्मक ही नहीं बल्कि राजनीतिक संदेशों से भरा हुआ है।

धार्मिक मंच से राजनीति की गूंज

रामलीला जैसे सांस्कृतिक मंच पर आचार्य प्रमोद का यह बयान दिखाता है कि आज राजनीति और धर्म किस तरह आपस में गहरे जुड़ चुके हैं।

  • बर्क पर निशाना: आचार्य का सांसद बर्क को ‘रावण’ कहना सिर्फ़ व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं बल्कि उस वोट बैंक पर चोट है, जो बर्क के साथ खड़ा रहता है।
  • योगी को अर्जुन बताना: यह सीधा संदेश है कि यूपी में ‘कानून-व्यवस्था की सख्त छवि’ को कमजोर समझने की गलती न की जाए।
  • दंगे पर चेतावनी: बुलडोज़र और तोप का जिक्र यूपी सरकार की सख्त कार्रवाई की विचारधारा का समर्थन माना जा सकता है।

सनातन और राजनीति की संयुक्त भाषा

आचार्य प्रमोद ने अपने वक्तव्य में कहा कि “हजारों साल से हिंदुओं पर अत्याचार हो रहा है, लेकिन सनातन धर्म ने कभी समझौता नहीं किया।” यह बयान सीधा उस विमर्श से जुड़ता है, जो आजकल देश की राजनीति में ‘सनातन की रक्षा बनाम सनातन पर हमले’ के मुद्दे पर खड़ा है। इससे साफ है कि आचार्य प्रमोद न सिर्फ़ धार्मिक श्रद्धा को संबोधित कर रहे थे, बल्कि उसे वर्तमान राजनीतिक हालात से भी जोड़ रहे थे।

रामलीला और पुरानी यादें

आचार्य का यह भी कहना कि वे अपने कॉलेज के दिनों में इसी मैदान में खेलते और रामलीला देखते थे, एक स्थानीय जुड़ाव और भावनात्मक अपील की तरह सामने आया। करीब 40 मिनट तक भजन गाकर उन्होंने दर्शकों को बांधे रखा। यह पहलू बताता है कि धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों में भी राजनीतिक संदेशों को भावनात्मक रंग देकर पेश किया जाता है।

अखिलेश–आजम रिश्तों पर विश्लेषण

राजनीतिक हलकों में आचार्य प्रमोद का बयान सबसे अहम अखिलेश यादव और आजम खान को लेकर रहा। उन्होंने इसे “बेमेल रिश्ता” बताते हुए कहा कि यह जल्द टूट सकता है।

  • पृष्ठभूमि: मुलायम सिंह के समय अखिलेश–आजम का रिश्ता मजबूत था।
  • वर्तमान स्थिति: मुलायम के बाद यह रिश्ता सिर्फ़ मजबूरी जैसा है।
  • विश्लेषण: आचार्य का यह आकलन बताता है कि यूपी की सपा की आंतरिक राजनीति में दरारें और खुलकर सामने आ सकती हैं।

क्यों अहम है यह बयान?

  1. धार्मिक मंच से राजनीतिक तीर: रामलीला का मंचन आमतौर पर सांस्कृतिक होता है, लेकिन यहां राजनीति प्रमुख रही।
  2. संभल का चुनावी महत्व: यह क्षेत्र मुस्लिम वोट बैंक और हिंदू भावनाओं के बीच सीधी टकराहट का मैदान बनता है।
  3. भविष्य की राजनीति का संकेत: योगी सरकार की नीतियों का समर्थन और विपक्षी नेताओं पर हमला, दोनों एक साथ साफ संदेश हैं।

रामलीला से निकला सियासी तीर

आचार्य प्रमोद कृष्णम् के संभल से दिए गए बयान केवल धार्मिक आस्था की अभिव्यक्ति नहीं हैं। ये सीधे तौर पर स्थानीय और प्रदेशीय राजनीति को प्रभावित करने वाले वक्तव्य हैं।

  • सांसद बर्क को ‘रावण’ कहना
  • योगी आदित्यनाथ को ‘अर्जुन’ बताना
  • अखिलेश–आजम रिश्तों पर दरार का इशारा करना

ये सब मिलकर इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति अब केवल विधानसभा या संसद तक सीमित नहीं रही, बल्कि धार्मिक-सांस्कृतिक मंच भी उसके केंद्र बन चुके हैं। यानी, रामलीला का मंच अब सिर्फ़ ‘लीला’ का मंच नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश देने का अखाड़ा भी बन चुका है।

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