मध्य पूर्व में दशकों से तनाव और संघर्ष की जड़ें गहरी रही हैं, लेकिन हाल के वर्षों में Iran और Israel के बीच बढ़ता तनाव एक संभावित युद्ध का रूप लेता दिख रहा है। यह संघर्ष सिर्फ दो देशों के बीच नहीं, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति, वैश्विक शक्तियों की भूमिका, धार्मिक कट्टरता और सुरक्षा चिंताओं से जुड़ा है।
Iran/Israel के बीच तनाव के कारण
Iran और Israel के बीच वैचारिक और राजनीतिक मतभेद वर्षों पुराने हैं। Israel जहां एक यहूदी राष्ट्र है, वहीं Iran एक शिया इस्लामी गणराज्य है। Iran, Israel के अस्तित्व को अस्वीकार करता है और खुले तौर पर फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करता है। दूसरी ओर Israel Iran के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता है। इसके चलते दोनों देशों के बीच सीधा सैन्य टकराव तो कम हुआ है लेकिन छद्म युद्ध, साइबर हमले और गुप्तचर अभियानों के रूप में संघर्ष चलता रहा है।

Iran/Israel की हालिया घटनाएं
2024-2025 में दोनों देशों के बीच तनाव ने एक नया मोड़ ले लिया है। Israel ने सीरिया और लेबनान में Iran समर्थित गुटों पर हवाई हमले किए हैं, जबकि Iran ने सीधे इज़राइली सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश की है। इसी बीच, गाजा में हमास और हिज़्बुल्ला जैसे संगठन भी सक्रिय हो गए हैं, जिनका समर्थन Iran करता है। यह स्थिति एक बड़े युद्ध का संकेत दे रही है।
- संभावित परिणाम: अगर Iran और Israel के बीच पूर्ण युद्ध छिड़ता है, तो इसके दुष्परिणाम केवल इन दोनों देशों तक सीमित नहीं रहेंगे। पूरा मध्य पूर्व क्षेत्र अस्थिर हो सकता है, तेल की आपूर्ति प्रभावित होगी, वैश्विक आर्थिक संकट गहरा सकता है और आतंकवादी संगठनों को नई ऊर्जा मिल सकती है। इसके साथ ही America, Russia और China जैसी बड़ी शक्तियाँ भी इसमें अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हो सकती हैं, जिससे यह संघर्ष और जटिल हो सकता है।
- वैश्विक प्रतिक्रिया: United Nation, America, European Union और India जैसे देश इस स्थिति को कूटनीति से सुलझाने की अपील कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय नहीं चाहता कि यह संघर्ष खुला युद्ध बने, क्योंकि इससे वैश्विक शांति और सुरक्षा पर गंभीर खतरा मंडरा सकता है।
Iran Vs Israel के युद्ध की स्थिति केवल एक क्षेत्रीय टकराव नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। युद्ध कभी भी किसी समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता। इस संकट का समाधान बातचीत, समझौते और अंतरराष्ट्रीय सहयोग से ही संभव है। यदि शांति प्रयास विफल होते हैं, तो इसका खामियाजा केवल दोनों देशों को नहीं, बल्कि समस्त मानवता को भुगतना पड़ सकता है।