केंद्र सरकार ने ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में बड़ा बदलाव करने की योजना बनाई है। सूत्रों के अनुसार, सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम मनरेगा को समाप्त करके उसकी जगह एक नया कानून लागू करने की तैयारी में है।सूत्रों के अनुसार जिसका नाम है ‘विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ विधेयक, 2025 होगा — जो ग्रामीण रोजगार और आजीविका गारंटी को एक नए ढांचे में लाएगा।
क्या बदलाव प्रस्तावित हैं?
मनरेगा को रद्द करके नया कानून बनाया जाएगा, जिसमें ग्रामीण परिवारों को काम की गारंटी भी होगी और रोजगार की संरचना को अपडेट किया जाएगा।
नया मॉडल 100 दिन की गारंटी को बढ़ाकर 125 दिन प्रतिवर्ष रोजगार देगा, जैसा कि नए प्रस्ताव में शामिल है।
इसके साथ ही फंडिंग पैटर्न और योजना के क्रियान्वयन मॉडल को भी बदलने की तैयारी है, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच खर्च साझा करने की व्यवस्था रखी जा सकती है।
क्या है मनरेगा ? मनरेगा या महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 भारत का एक प्रमुख सामाजिक कल्याण कानून है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में कम से कम 100 दिनों का सुनिश्चित और वाजिब मजदूरी रोजगार प्रदान करना है। यह योजना 2006 से लागू है और ग्रामीण आजीविका सुरक्षा के लिए काम करती है। इसके तहत, अगर किसी ग्रामीण को रोजगार नहीं मिलता, तो उसे बेरोज़गारी भत्ता पाने का अधिकार भी मिलता है।
प्रियंका गांधी ने क्या कहा?
कांग्रेस सांसद और पार्टी की प्रमुख नेताओं में से एक प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस फैसले पर सख़्त प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि का नाम बदलने या उसे समाप्त करने का प्रस्ताव समझ से परे है, और इससे सरकारी संसाधनों का अनावश्यक खर्च होगा क्योंकि हर जगह नाम बदला जाना है — जैसे ऑफिस बोर्ड, स्टेशनरी और दस्तावेजों में संशोधन।
उनका बयान था – “मुझे समझ नहीं आता कि इसके पीछे क्या सोच है। यह महात्मा गांधी का नाम है, और जब इसे बदला जाता है तो सरकार को दोबारा खर्च करना पड़ता है, जो सही नहीं है।”





