सोनम वांगचुक करेंगे ‘बार्डर मार्च’, ठीक पहले लेह में धारा 144 लागू

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चित्र : जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक।

लेह। जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक 07 मार्च से सीमा मार्च शुरु करने जा रहे है। उन्होंने ये बात सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर एक वीडियो पोस्ट करके कही, इस बीच जिला मजिस्ट्रेट ने 7 अप्रैल को जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के ‘बॉर्डर मार्च’ से पहले, लेह जिले में धारा 144 लागू कर दी है, जिससे किसी भी तरह के जुलूस, रैली या मार्च पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

नए आदेश के कहा गया है कि जिला मजिस्ट्रेट, लेह की लिखित पूर्व स्वीकृति के बिना किसी भी व्यक्ति द्वारा कोई जुलूस/रैली/मार्च आदि नहीं निकाला जाएगा। कोई भी व्यक्ति सक्षम प्राधिकारी की पूर्वानुमति के बिना वाहन पर लगे लाउडस्पीकर या अन्य लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं करेगा। सक्षम प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति के बिना किसी भी सार्वजनिक सभा की अनुमति नहीं दी जाएगी।

कोई भी व्यक्ति ऐसा कोई वक्तव्य नहीं देगा, जिससे सांप्रदायिक सद्भाव, सार्वजनिक शांति भंग होने की संभावना हो तथा जिससे जिले में कानून एवं व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो। सभी व्यक्ति यह सुनिश्चित करेंगे कि वे आदर्श आचार संहिता का पालन करें तथा उनकी सभी गतिविधियां कानून के अनुसार हों।

इस बीच, सोनम वांगचुक हिमालयी क्षेत्र में जलवायु संकट पर चिंता जताते रहे हैं और लद्दाख को राज्य का दर्जा देने तथा संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे 7 अप्रैल, रविवार को ‘पश्मीना मार्च’ और ‘चांगथांग चरागाहों’ के लिए शांतिपूर्ण मार्च की शुरुआत करेंगे।

वांगचुक ने ट्वीट किया, ‘जो लोग इस मार्च में शामिल होने के लिए लेह आने पर जोर दे रहे हैं। अगर आपको आना ही है तो आइए, लेकिन आदर्श रूप से 5 अप्रैल तक और 6 अप्रैल के बाद नहीं, ताकि आप अनुकूलन आदि कर सकें। मैं आखिरकार यह कहने में सक्षम हूं क्योंकि अब मौसम थोड़ा गर्म हो गया है और गेस्टहाउस भी खुल रहे हैं। कृपया #FriendsOfLadakh के साथ समन्वय करें।

वांगचुक ने इससे पहले 21 दिनों की भूख हड़ताल की थी। हड़ताल खत्म करने के बाद 27 मार्च को महिलाओं ने सरकार की कथित निष्क्रियता के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। वांगचुक, जो लेह स्थित शीर्ष निकाय का हिस्सा हैं, जिसमें सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संगठन शामिल हैं, ने कहा कि वे अपने आंदोलन में गांधीवादी दृष्टिकोण अपना रहे हैं, जो क्षेत्र के नाजुक पर्यावरण और इसकी आबादी के स्वदेशी चरित्र की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

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