भारतीय विज्ञापन जगत के सबसे प्रभावशाली और रचनात्मक व्यक्तित्वों में से एक, पीयूष पांडे का गुरुवार को 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया। चार दशकों से भी अधिक समय तक उन्होंने भारतीय विज्ञापन को नई दिशा और पहचान दी। अपनी विशिष्ट मूंछों, चिर-परिचित मुस्कान और आम भारतीय की सोच को समझने की गहरी क्षमता के साथ, उन्होंने विज्ञापनों को केवल प्रचार का माध्यम नहीं, बल्कि कहानियों और भावनाओं की अभिव्यक्ति बना दिया।
पीयूष का जीवनकाल
जयपुर में जन्मे पीयूष पांडे ने अपने जीवन के शुरुआती दिनों में कई क्षेत्रों में हाथ आजमाया — वे क्रिकेटर रहे, चाय चखने का काम किया और निर्माण क्षेत्र में भी काम किया। लेकिन 1982 में जब उन्होंने ओगिल्वी इंडिया से जुड़ाव किया, तब से उनकी रचनात्मक यात्रा ने नई ऊंचाइयां छू लीं। यही वह दौर था जब भारतीय विज्ञापन की भाषा अंग्रेज़ी से निकलकर आम लोगों की बोली में ढलने लगी।
भारतीय उपभोक्ताओं के लिए यादगार विज्ञापन
बता दे, पांडे ने भारतीय उपभोक्ताओं से जुड़ने वाले कई यादगार विज्ञापन तैयार किए। एशियन पेंट्स का “हर खुशी में रंग लाए”, कैडबरी डेयरी मिल्क का “कुछ खास है ज़िंदगी में”, फेविकोल का मशहूर “एग” विज्ञापन और हच का प्यारा “पग” वाला एड आज भी लोगों के दिलों में बसे हैं। उनके विज्ञापन सिर्फ उत्पाद नहीं बेचते थे, बल्कि भारत की संस्कृति और भावनाओं को दर्शाते थे। पीयूष पांडे की सोच थी कि एक अच्छा विज्ञापन केवल दिमाग पर असर न डाले, बल्कि दिल को छू जाए। उन्होंने कहा था, “लोग यह नहीं कहते कि यह कैसे बनाया गया, बल्कि यह कहते हैं कि यह कितना अच्छा लगा।” इसी भावना ने उनके काम को विशेष बनाया।
अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार
उनके नेतृत्व में ओगिल्वी इंडिया ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई पुरस्कार जीते और भारत को वैश्विक विज्ञापन मानचित्र पर जगह दिलाई। 2018 में, वे और उनके भाई प्रसून पांडे कान्स लायंस के लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड “लायन ऑफ सेंट मार्क” पाने वाले पहले एशियाई बने। इसके अलावा उन्हें क्लियो लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (2012) और भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान भी मिला।
राजनीति में रचनात्मकता का योगदान
पीयूष पांडे ने राजनीतिक अभियानों में भी अपनी रचनात्मकता का योगदान दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 के चुनाव अभियान का प्रसिद्ध नारा “अब की बार, मोदी सरकार” उन्हीं की सोच का परिणाम था, जिसने पूरे देश में एक लहर पैदा की।
पीयूष ने दिया युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहन
पीयूष अपने जीवन के अंतिम दिनों तक वे नए विचारों और युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने में लगे रहे। उनके सहयोगियों का कहना है कि उन्होंने सिर्फ भारतीय विज्ञापन की भाषा नहीं बदली, बल्कि उसका व्याकरण भी नया रचा। उनका जाना भारतीय विज्ञापन जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उन्होंने साबित किया कि एक रचनात्मक विचार न केवल बाजार बदल सकता है, बल्कि लोगों के दिलों को भी छू सकता है।


