1975 का आपातकाल– लोकतंत्र पर सबसे बड़ा आघात

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National Emergency 1975: The murder of the Indian republic on June 25

25 जून 1975 की रात भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक ऐसा काला अध्याय बन गई, जिसे “आपातकाल” कहा गया। यह वह समय था जब देश के संविधानिक मूल्यों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों पर गंभीर संकट आ गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आंतरिक आपातकाल लागू किया, जिसके बाद 21 महीनों तक भारत एक संवैधानिक तानाशाही के दौर से गुजरा।

आपातकाल लगाने की पृष्ठभूमि

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को अवैध करार दिया और उन्हें 6 साल तक किसी भी चुनाव में हिस्सा लेने से अयोग्य घोषित कर दिया। इस फैसले के बाद इंदिरा गांधी की सत्ता को खतरा महसूस हुआ। विपक्षी नेता जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) ने जनता से आह्वान किया कि वे सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरें और “संपूर्ण क्रांति” लाएँ। बढ़ते विरोध और राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए, इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा करवाई।

Under Jayaprakash Narayan’s leadership, the opposition rallied against Indira Gandhi’s Congress from 1974 onwards
  • आपातकाल लागू होते ही मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। प्रेस सेंसरशिप लागू की गई, जिससे अखबारों को सरकार के विरुद्ध कुछ भी छापने की इजाजत नहीं थी। हजारों विपक्षी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया गया। इसमें अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जयप्रकाश नारायण जैसे प्रमुख नाम शामिल थे।

आपातकाल के दौरान क्या हुआ?

  • रेडियो और दूरदर्शन को पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में ले लिया गया। “इंदिरा इज़ इंडिया” जैसे नारे उछाले गए। संजय गांधी के नेतृत्व में नसबंदी अभियान चलाया गया, जिससे लाखों लोगों को जबरन परिवार नियोजन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। छात्र संगठनों को बंद कर दिया गया और नागरिकों की हर गतिविधि पर निगरानी रखी गई।
The most spectacular fallout of the Emergency was that for the first time a non-Congress government came to power and it was ushered in by the youth of the country

जनता की प्रतिक्रिया और अंत

आपातकाल के दौरान आम जनता खामोश थी, लेकिन अंदर ही अंदर असंतोष बढ़ता जा रहा था। जनवरी 1977 में इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा की। विपक्ष ने जनता पार्टी के बैनर तले एकजुट होकर चुनाव लड़ा। मार्च 1977 में हुए चुनाव में इंदिरा गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। पहली बार देश में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।

आपातकाल भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक ऐसा समय था, जब संविधान, नागरिक स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई थी। यह घटना आज भी याद दिलाती है कि लोकतंत्र को कायम रखने के लिए सतर्कता, स्वतंत्र संस्थाएं और जागरूक नागरिक जरूरी हैं। आपातकाल एक सबक है कि जब भी सत्ता निरंकुशता की ओर बढ़ती है, तब जनतंत्र की आत्मा को खतरा हो सकता है।

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