नाटो देश डेनमार्क में फिर ड्रोन की घुसपैठ, क्या रूस कर रहा है खुफिया जासूसी?

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यूरोप में सुरक्षा को लेकर नई चिंता खड़ी हो गई है। नाटो सदस्य देश डेनमार्क में एक बार फिर रहस्यमयी ड्रोन देखे गए हैं। डेनमार्क के रक्षा मंत्रालय ने पुष्टि की है कि बीती रात कई सैन्य ठिकानों के ऊपर अज्ञात ड्रोन मंडराते हुए नजर आए।

करुप एयरबेस के ऊपर मंडराए ड्रोन

स्थानीय मीडिया के मुताबिक, शुक्रवार रात करुप एयरबेस के भीतर और बाहर कई ड्रोन देखे गए। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि रात 8 बजे के आसपास ये गतिविधियां सबसे ज्यादा दर्ज हुईं। कुछ समय के लिए हवाई क्षेत्र को नागरिक विमानों के लिए बंद भी करना पड़ा, हालांकि करुप से कोई वाणिज्यिक उड़ानें संचालित नहीं होतीं।

हवाई अड्डों पर भी असर

इससे पहले बुधवार और गुरुवार की रात को चार हवाई अड्डों के ऊपर ड्रोन दिखाई दिए थे। राजधानी कोपेनहेगन एयरपोर्ट पर तो उड़ानें कई घंटों तक बाधित रहीं।
डेनमार्क के न्याय मंत्री पीटर हम्मलगार्ड ने कहा – “इन ड्रोन उड़ानों का मकसद डर और भ्रम फैलाना है। सरकार जल्द ही ऐसा कानून लाएगी जिससे अहम ढांचे के मालिक खुद इन ड्रोन को मार गिरा सकें।”

स्वीडन से मिली मदद

डेनमार्क ने स्वीडन से एंटी-ड्रोन सिस्टम उधार लेने का फैसला किया है। हालांकि इस तकनीक के बारे में ज्यादा जानकारी साझा नहीं की गई। इसी बीच पड़ोसी जर्मनी के श्लेसविग-होल्सटीन प्रांत में भी ड्रोन की गतिविधियां दर्ज की गईं।

जर्मनी की चेतावनी

जर्मनी की आंतरिक मंत्री सबीने सुटर्लिन-वैआक ने कहा कि उत्तर जर्मनी के कई राज्य मिलकर ड्रोन से निपटने की संयुक्त रणनीति बना रहे हैं। वहीं जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने चेतावनी दी – “यूरोप इस समय शांति की स्थिति में नहीं है। लगातार ड्रोन उड़ानें, साइबर हमले और तोड़फोड़ की घटनाएं किसी बड़े खतरे का संकेत देती हैं।”

रूस पर शक गहराया

हालांकि डेनमार्क और जर्मनी ने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन रूस पर शक गहराता जा रहा है। 2019 में बर्लिन में हुए “टीयरगार्टन हत्या” मामले और हाल के साइबर हमलों ने पहले ही यूरोप की सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी थी। अब रहस्यमयी ड्रोन ने खतरे का नया आयाम खोल दिया है।

साइबर और हाइब्रिड वॉरफेयर

नाटो देशों के लिए यह ड्रोन गतिविधियां किसी साइबर और हाइब्रिड वॉरफेयर की ओर इशारा कर रही हैं। डेनमार्क और जर्मनी दोनों ही अब अपने सुरक्षा ढांचे को मजबूत कर रहे हैं। आने वाले दिनों में यह मामला यूरोपीय संघ और नाटो की बैठकों में अहम मुद्दा बन सकता है।

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