मनरेगा पर सवाल हुआ तो राजभर बोले– पुराने कपड़े बदलने पड़ते हैं, साथ में कर दी डिप्टी CM को लेकर बड़ी मांग

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर एक बार फिर अपने बयान को लेकर चर्चा में हैं। बलिया जिले के फेफना विधानसभा क्षेत्र के करनई गांव में एक निजी कार्यक्रम में पहुंचे राजभर ने मीडिया से बातचीत के दौरान न सिर्फ मनरेगा के नाम बदलने को लेकर कांग्रेस पर तीखा तंज कसा, बल्कि डिप्टी सीएम पद को संवैधानिक दर्जा देने की मांग भी उठा दी।
राजभर ने कहा कि आज जनता पहले से ज्यादा शिक्षित और जागरूक हो चुकी है। राजनीतिक चेतना बढ़ी है और इसी वजह से अब लोगों के बीच यह मांग उठ रही है कि उपमुख्यमंत्री के पद को भी संविधान में स्पष्ट दर्जा मिलना चाहिए। उन्होंने इसे समय की जरूरत बताया।


मनरेगा नाम विवाद पर कांग्रेस को जवाब
कांग्रेस द्वारा 5 जनवरी से मनरेगा का नाम बदलने के विरोध में प्रस्तावित देशव्यापी आंदोलन पर पलटवार करते हुए राजभर ने कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रपिता हैं, उन्हें कोई नजरअंदाज नहीं कर रहा। लेकिन जब कोई चीज पुरानी हो जाती है, तो उसे बदलना पड़ता है।
उन्होंने कहा, “जब कपड़ा पुराना हो जाता है तो नया पहनना पड़ता है। आज पूरी दुनिया राम-राम कर रही है, अगर नाम में राम जोड़ दिया गया तो इसमें गलत क्या है?”
राजभर ने यह भी दावा किया कि सरकार काम के दिनों को 100 से बढ़ाकर 325 करने की दिशा में काम कर रही है और मजदूरी का भुगतान अब सात दिनों के भीतर किया जा रहा है।
ब्राह्मण विधायकों की बैठक पर सफाई
ब्राह्मण विधायकों की हालिया बैठक को लेकर पूछे गए सवाल पर राजभर ने कहा कि किसी भी विधायक में कोई नाराजगी नहीं है। यह सिर्फ आपसी संवाद और चर्चा के लिए आयोजित बैठक थी, इसे गलत नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए।
घोसी उपचुनाव पर बड़ा बयान


घोसी विधानसभा सीट पर उपचुनाव को लेकर राजभर ने स्पष्ट किया कि एनडीए गठबंधन जिस भी प्रत्याशी को मैदान में उतारेगा, उनकी पार्टी पूरी ताकत से उसका समर्थन करेगी।
अरविंद राजभर के चुनाव लड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि अगर एनडीए गठबंधन की ओर से निर्देश मिला, तो वह चुनाव लड़ेंगे।
कड़ा निष्कर्ष
डिजिटल इंडिया, रोजगार और पारदर्शिता की बात करने वाले दौर में मनरेगा जैसे कार्यक्रमों और संवैधानिक पदों पर इस तरह की बयानबाज़ी यह सवाल खड़ा करती है—क्या देश की राजनीति अब मुद्दों से ज्यादा प्रतीकों और नामों की बहस में उलझती जा रही है?

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