सस्ती प्लास्टिक की कार्बाइड गन ने 65 बच्चों की आंखों की रोशनी छीन ली है। इनमें से 30 से अधिक बच्चे 14 साल से कम उम्र के हैं, जबकि 10 युवा 18-23 साल की उम्र के हैं। डॉक्टरों का कहना है कि अब सर्जरी ही एकमात्र विकल्प बचा है।
क्या है कार्बाइड गन?
यह घरेलू जुगाड़ वाली ‘गन’ प्लास्टिक पाइप, कैल्शियम कार्बाइड और लाइटर से बनाई जाती है। यूट्यूब वीडियो देखकर बच्चे इसे मात्र 300 रुपये में खुद बना लेते थे या छोटी दुकानों से खरीदते थे। गन चलाते समय कार्बाइड के कण और गैस आंखों में चले जाते हैं, जिससे काली पुतली (कॉर्निया) खराब हो जाती है और पुतलियां आपस में चिपक जाती हैं। जिज्ञासावश बच्चे गन में झांकते हैं, तभी विस्फोट होता है और स्थायी नुकसान पहुंचता है।

पूर्वांचल और बिहार से पहुंचे मरीज
हादसे वाराणसी, आजमगढ़, गाजीपुर, मऊ, बलिया, जौनपुर समेत अन्य जिलों में हुए। कई बच्चे बिहार से भी इलाज के लिए आए। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के क्षेत्रीय नेत्र संस्थान और निजी अस्पतालों में इनका इलाज चल रहा है।
- BHU में: पिछले डेढ़ महीने में 40 मरीज, जिनमें 22 सिर्फ कार्बाइड गन से घायल।
- अन्य डॉक्टरों के पास: डॉ. अनुराग टंडन ने 5 सर्जरी की (बच्चों की उम्र 6-10 साल), डॉ. आरके ओझा और डॉ. सुनील शाह के यहां 10-10 मरीज।
- 80% घायल खुद गन चलाते समय, 20% देखते हुए चोटिल हुए।
डॉक्टरों की चेतावनी और शोध
BHU के प्रो. आरपी मौर्य ने बताया कि दीपावली से एक सप्ताह पहले से केस आने शुरू हुए। प्रो. दीपक मिश्रा की टीम इस पर शोध कर रही है, जो गुवाहाटी सम्मेलन में प्रस्तुत होगा। नेत्र विशेषज्ञों का कहना है कि कार्बाइड कणों से कॉर्निया की पारदर्शी झिल्ली खराब हो जाती है, ठीक होने की संभावना कम होती है। कई मामलों में नेत्र प्रत्यारोपण जरूरी है।
चेतावनी: यह कोई खिलौना नहीं, बल्कि रासायनिक बम है। अभिभावकों से अपील है कि बच्चों को ऐसे खतरनाक जुगाड़ से दूर रखें। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो देखकर न बनाएं या इस्तेमाल न करें।



