उत्तर प्रदेश का बरेली इस समय “आई लव मोहम्मद” विवाद और उसके बाद भड़की हिंसा को लेकर सियासी भूचाल का केंद्र बना हुआ है। मस्जिदों तक पहुँचने से रोके जा रहे लोगों और पुलिस की सख़्ती ने न केवल स्थानीय समाज में असंतोष पैदा किया है, बल्कि विपक्षी नेताओं के लिए भी सरकार पर निशाना साधने का बड़ा मुद्दा दे दिया है। इसी कड़ी में भीम आर्मी चीफ और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद को सहारनपुर में ही हाउस अरेस्ट कर लिया गया। प्रशासन का तर्क है कि सुरक्षा कारणों से उन्हें बरेली जाने से रोका गया। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि क्या वास्तव में यह सुरक्षा का मामला है या सरकार सच को सामने आने से रोक रही है?
बरेली का विवाद और उसका विस्तार
26 सितंबर को जुमे की नमाज़ के बाद “आई लव मोहम्मद” विवाद को लेकर बरेली में बड़ी भीड़ इकट्ठा हुई। भीड़ ने प्रदर्शन की कोशिश की, पुलिस ने रोका और हालात बेकाबू हो गए। पथराव, लाठीचार्ज और बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी के बाद पूरा मामला सांप्रदायिक तनाव में बदल गया। यह विवाद अचानक नहीं आया था। इसकी शुरुआत कानपुर में बारावफात जुलूस के दौरान “आई लव मोहम्मद” बैनर से हुई थी। बाद में यह कई जिलों में फैल गया और अब यह एक राजनीतिक-सामाजिक टकराव का रूप ले चुका है।
चंद्रशेखर का निशाना: अगर सब ठीक है तो मुझे क्यों रोका गया?
चंद्रशेखर आज़ाद ने योगी सरकार पर सीधा वार करते हुए कहा कि अगर बरेली में सब कुछ सामान्य है, मुस्लिम भाई सुरक्षित हैं और कोई अन्याय नहीं हो रहा है, तो फिर सरकार उन्हें वहां जाने से क्यों रोक रही है? उन्होंने यह भी कहा कि “घटनाएँ अचानक नहीं होतीं, उनके पीछे कोई योजना होती है।” उनका इशारा साफ है कि बरेली की हिंसा या तो सुनियोजित थी या फिर प्रशासन की गलतियों से हालात बिगड़े।
विपक्षी नेताओं पर भी रोक – पैटर्न पर सवाल
गौर करने वाली बात है कि चंद्रशेखर से पहले कांग्रेस सांसद इमरान मसूद और पूर्व सांसद कुंवर दानिश अली को भी हाउस अरेस्ट किया गया था। यानी सरकार ने हर उस नेता पर अंकुश लगाने की कोशिश की जो इस घटना को राजनीतिक मुद्दा बना सकता था।
यहां सवाल उठता है:
- क्या सरकार विपक्षी नेताओं की “जमीनी सियासत” को रोकना चाहती है?
- क्या यह सुरक्षा का मसला है या फिर असहमति की आवाज़ को दबाने की कोशिश?
- लोकतंत्र में क्या यह सामान्य हो गया है कि विपक्ष को संवेदनशील इलाकों में जाने से रोका जाए?
प्रशासन का रवैया: बुलडोजर, गिरफ्तारी और एनकाउंटर
बरेली में अब तक 82 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं और 2000 से अधिक लोगों पर मुकदमे दर्ज हुए हैं। कई घरों पर बुलडोजर चला, तीन आरोपियों को मुठभेड़ में पकड़ने की कहानी सामने आई। यहाँ एक बड़ा सवाल यह है कि क्या कानून-व्यवस्था को सख्ती से लागू करने की आड़ में प्रशासन अतिरेक तो नहीं कर रहा? और क्या यह कार्रवाई केवल “एक समुदाय विशेष” पर ही केंद्रित है?
विश्लेषण: सियासी और सामाजिक असर
- सियासी संदेश – योगी सरकार यह दिखाना चाहती है कि कानून-व्यवस्था पर उसका पूरा नियंत्रण है। लेकिन विपक्ष इसे “तानाशाही रवैया” कहकर लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन का मुद्दा बना रहा है।
- सामाजिक विभाजन – “आई लव मोहम्मद” बनाम “आई लव महादेव” जैसे नारों ने समाज को और ध्रुवीकृत किया है। यह सिर्फ धार्मिक टकराव नहीं बल्कि पहचान की राजनीति बन चुका है।
- विपक्ष की रणनीति – कांग्रेस और भीम आर्मी जैसे दल इस मुद्दे को “असमानता और अन्याय” से जोड़कर पेश कर रहे हैं।
- जनता की स्थिति – आम लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। मस्जिद तक न जा पाने, धार्मिक आस्था का पालन न कर पाने और घरों पर कार्रवाई से उनकी नाराजगी बढ़ रही है।
असहमति की आवाज़: यूपी में लोकतंत्र पर दबाव?
बरेली का विवाद और सहारनपुर में चंद्रशेखर का हाउस अरेस्ट केवल एक प्रशासनिक घटना नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र, विपक्ष की भूमिका, धार्मिक स्वतंत्रता और कानून-व्यवस्था जैसे बड़े सवाल खड़ा कर रहा है। आज यह टकराव केवल “आई लव मोहम्मद” बनाम “आई लव महादेव” नहीं रह गया है, बल्कि यह सवाल बन चुका है कि – “क्या लोकतंत्र में असहमति की आवाज़ उठाना अब भी सुरक्षित है या नहीं?”