उत्तर प्रदेश में आउटसोर्स कर्मचारियों के मानदेय पर गलत तरीके से 18% जीएसटी वसूले जाने का मामला सामने आया है। सेवा प्रदाता फर्में मानदेय और अन्य मदों पर भी कर वसूल रही हैं, जबकि नियमानुसार यह पूरी तरह से कर-मुक्त है। प्रारंभिक जांच में यह गड़बड़ी लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) में पकड़ी गई है, लेकिन जानकारों का कहना है कि प्रदेश के अन्य विभागों और निगमों में भी यही स्थिति हो सकती है।
4 लाख से ज्यादा कर्मचारी प्रभावित
प्रदेश में लगभग चार लाख से ज्यादा आउटसोर्स कर्मचारी कार्यरत हैं। इन्हीं कर्मचारियों के मासिक मानदेय की राशि पर सेवा प्रदाता फर्मों ने 18% की दर से जीएसटी वसूल कर विभागों से वसूली की। यही नहीं, कर्मचारियों के ईपीएफ (Employees’ Provident Fund) और ईएसआईसी (Employees’ State Insurance Corporation) के अंशदान पर भी फर्मों ने गलत तरीके से टैक्स जोड़कर विभागों से भुगतान लिया।
नियम क्या कहते हैं?
जीएसटी काउंसिल के 18 जून 2017 के नोटिफिकेशन के अनुसार, ईपीएफ और ईएसआईसी पर कर देयता शून्य है। यानी इन मदों पर जीएसटी नहीं लगाया जा सकता। इसके बावजूद कई फर्मों ने विभागों से टैक्स इन्वॉइस जारी कर जीएसटी की वसूली की है।
घपले की शंका और जांच की मांग
सूत्रों का कहना है कि यह भी जांच जरूरी है कि सेवा प्रदाता फर्मों ने वसूले गए जीएसटी को सरकारी खजाने में जमा कराया या फिर बाद में रिफंड या समायोजन कराकर राशि को अपने पक्ष में इस्तेमाल कर लिया। राज्य कर विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि, “यह गंभीर मामला है। यदि बड़े स्तर पर जांच कराई जाती है तो भारी गड़बड़ी का खुलासा हो सकता है। विभाग इस पर जांच की दिशा में कदम उठाएगा।”
सरकार और विभाग की चुनौती
यह खुलासा ऐसे समय में हुआ है जब सरकार पारदर्शिता और भ्रष्टाचार-मुक्त व्यवस्था पर जोर दे रही है। ऐसे में आउटसोर्सिंग व्यवस्था में इस तरह के घोटाले पर लगाम लगाना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती होगी। यह मामला न केवल वित्तीय अनियमितताओं का संकेत देता है, बल्कि कर्मचारियों और सरकारी तंत्र दोनों के हितों पर चोट है। अब देखना होगा कि सरकार जांच कर दोषियों के खिलाफ कितनी सख्त कार्रवाई करती है।