सांप की तरह है ये गांव, अब यहां से मिले 3700 प्राचीन सिक्के

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चित्र : फंगिरी गांव में मिले प्राचीन सिक्के और तेलंगाना हेरिटेज विभाग की टीम।

हैदराबाद। ये सिस्के इश्कवाकु वंश के बताए जा रहे हैं, जोकि आंध्र इश्कवाकु साम्राज्य से सदियों पहल मौजूद था। तेलंगाना हेरिटेज विभाग यहां काफी वक्त से खोज कर रहा था। विभाग को ये सिक्के फंगिरी गांव में मिले जो लगभग दो सहस्राब्दी पुराने सिक्के बताए जा रहे हैं।

प्राचीन सिक्के हैदराबाद से लगभग 110 किलोमीटर दूर, 16.7 सेंटीमीटर व्यास और 15 सेमी ऊंचाई वाले एक बर्तन में पाए गए, जिन्हें 29 मार्च को सूर्यपेट जिले के गांव में एक प्रारंभिक ऐतिहासिक स्थल पर खुदाई करके निकाला गया था।

खुदाई के दौरान बर्तन मिलने के बाद विभाग के अधिकारियों को पता चला कि बर्तन में सीसे के सिक्के भरे हुए हैं। हेरिटेज विभाग की ओर से 4 अप्रैल यानी गुरुवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘सभी सिक्कों को बर्तन से बाहर निकाला गया और उनकी गिनती की गई। सिक्कों की संख्या तीन हजार सात सौ तीस (3730) है और प्रत्येक सिक्के का औसत वजन 2.3 ग्राम है। टीम द्वारा बारीकी से निरीक्षण करने पर पता चला कि सभी सिक्के एक जैसे हैं और सीसे से बने हैं।’

बता दें कि फंगिरी गांव जिला मुख्यालय सूर्यपेट से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित है। हेरिटेज विभाग के अनुसार, ‘फंगिरी गांव का नाम गांव के उत्तरी हिस्से में स्थित एक पहाड़ी के आकार से पड़ा है, जो सांप के फन की तरह दिखता है।’

फंगिरी में इस ऐतिहासिक स्थल की खोज और संरक्षण हैदराबाद के अंतिम निज़ाम के काल में हुई। तो वहीं, साल 1941 से 1944 तक खाजा मोहम्मद अहमद द्वारा इसकी खुदाई की गई थी। हालांकि फंगिरी इस क्षेत्र में एकमात्र स्थल नहीं है क्योंकि इस स्थल के आस-पास कई बौद्ध स्थल हैं जैसे वर्धमानुकोटा, गजुलाबंदा, तिरुमलगिरी, नगरम, सिंगाराम, अरवापल्ली, इयावरिपल्ली, अरलागड्डागुडेम, येलेश्वरम आदि भी हैं।

विभाग ने कहा, ‘यह प्राचीन व्यापार मार्ग (दक्षिणापथ) पर पहाड़ी की चोटी पर रणनीतिक रूप से स्थित महत्वपूर्ण बौद्ध मठों में से एक है, जो दक्कन के पश्चिमी और पूर्वी तट को जोड़ता है। यह विकसित बौद्ध मठ आंध्र प्रदेश के अमरावती और विजयपुरी (नागार्जुनकोंडा) के मठों से भी बेहतर है।’

2001-2002, 2002-2003, 2004-2005, 2006-2007, 2010-2011, 2013-2014 और 2018-2019 के दौरान सात क्षेत्र मौसमों के लिए फांगिरी और उसके आसपास खुदाई की गई है। इसके बाद महास्तूप, अर्द्धवृत्ताकार चैत्यगृह, मन्नत स्तूप, स्तंभों वाले सभा भवन, विहार, विभिन्न स्तरों पर सीढ़ियों वाले मंच, अष्टकोणीय स्तूप चैत्य, 24 स्तंभों वाला मंडप, गोलाकार चैत्य, सांस्कृतिक सामग्री जिसमें टेराकोटा के मोती, अर्ध-कीमती मोती, लोहे की वस्तुएं, शंख की चूड़ियों के टुकड़े, सिक्के, प्लास्टर की आकृतियां, ब्राह्मी शिलालेख और पवित्र अवशेष ताबूत की खोज हुई।

फंगिरी और उसके आसपास की सभी वस्तुओं का समय पहली शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसवी तक माना जाता है। बता दें कि हालही में हुए उत्खनन में, सिक्कों के भंडार के अलावा, पत्थर और कांच के मोती, सीप की चूड़ियों के टुकड़े, प्लास्टर की आकृतियां, टूटी हुई चूना पत्थर की मूर्तियां, खिलौना गाड़ी का पहिया, लोहे की कीलें, सीसे के सिक्के आदि महत्वपूर्ण पुरावशेष प्राप्त हुए हैं।

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