यहां जानें, गुड़ी पड़वा मनाने की पीछे, क्या है परंपरा

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चित्र : गुड़ी पड़वा का प्रतीक चिन्ह।

हमारा देश त्योहारों की देश है। यहां सालभर त्योहार मनाए जाते हैं। त्योहार जो उत्सव की तरह मन में उत्साह और जीवन में सकारात्मकता का संचार करते हैं। ऐसा ही एक त्योहार है गुड़ी पड़वा!

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाने वाला यह पर्व वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) के नाम से भी पहचाना जाता है। इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है। ‘गुड़ी’ का अर्थ है ‘विजय पताका’, कहते हैं की राजा शालिवाहन ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं (शक) का प्रारंभ किया था।

इस त्योहार के बारे में एक कथा के बारे में उल्लेख किया जाता है कि कहते हैं कि सुग्रीव के आग्रह पर भगवान राम ने बाली का वध किया। माना जाता है कि जिस दिन भगवान राम ने बाली का वध किया था, उस दिन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा थी। इसलिए हर साल इस दिन को दक्षिण में गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है और विजय पताका फहराई जाती है।

हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र मास से होती है। महाराष्ट्र में हिंदू नववर्ष को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाते हैं। यह दिन फसल दिवस का प्रतीक है। इस दिन भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है।

महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा मनाने के पीछे एक कारण यह भी है कि इस दिन मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्ध में विजय से भी है। गुड़ी पड़वा के दिन सूर्योदय होने से पहले उठकर स्नान कर लें। इसके बाद अपने घर के मुख्यद्वार को आम के पत्तों से सजा दें। इसके बाद घर के एक हिस्से में गुड़ी लगाकर उसे आम के पत्ते, फूल और कपड़े आदि से सजाएं।

इस दिन, श्रीखंड को आमतौर पर गर्म पूरियों के साथ खाया जाता है। पूजा की थाली में मौजूद वस्तुओं के अलावा, कुछ अन्य गुड़ी पड़वा व्यंजनों में मूंग दाल वड़ा, आलू वड़ा, मसाला भात, भाकरवड़ी, कद्दू लिंबू चटनी और मिश्रित दाल की सब्जी शामिल हैं, जिनसे भगवान का पूजन कर ग्रहण किया जाता है।

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