राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव एक बार फिर सुर्खियों में हैं, सोशल मीडिया पर अनुष्का यादव के साथ अपने रिश्ते का खुलासा करने के बाद पार्टी और परिवार से नाराज़गी झेल रहे तेज प्रताप अब एक नए झंडे और नई रणनीति के साथ राजनीति में वापसी कर चुके हैं, और स्पष्ट कर दिया है कि वे आगामी चुनाव जरूर लड़ेंगे।
लालू प्रसाद यादव द्वारा तेज प्रताप को पार्टी और परिवार से बाहर करने के फैसले ने बिहार की राजनीति में बड़ा भूचाल ला दिया था, इसके बाद से ही तेज प्रताप के सियासी भविष्य को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया अब जब विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं, तेज प्रताप यादव ने फिर से राजनीतिक मैदान में उतरने की तैयारी शुरू कर दी है।
तेज प्रताप के अगले कदम को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा महुआ विधानसभा सीट को लेकर है, खबरें हैं कि वे महुआ से चुनाव लड़ सकते हैं हालांकि उन्होंने खुद सीट को लेकर कोई औपचारिक घोषणा नहीं की है, तेज प्रताप ने हाल ही में सावन की पहली सोमवारी पर अपने वर्तमान निर्वाचन क्षेत्र हसनपुर का दौरा किया और जनता से मुलाकात कर समस्याएं सुनीं लेकिन जब उनसे पूछा गया कि अगला चुनाव हसनपुर से लड़ेंगे या महुआ से, तो उन्होंने जवाब देने से परहेज़ किया।

महुआ सीट को लेकर अटकलें इसलिए भी मजबूत हो रही हैं क्योंकि तेज प्रताप ने 2015 में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत इसी सीट से की थी और हाल ही में वे महुआ का दौरा भी कर चुके हैं, इस दौरे के दौरान उन्होंने अपने पुराने वादों को याद करते हुए जनता से समर्थन मांगा। महुआ विधानसभा क्षेत्र, जो वैशाली जिले में स्थित है, सामाजिक समीकरणों के लिहाज़ से आरजेडी के लिए अहम माना जाता है, यहां यादव और मुस्लिम समुदाय की संयुक्त आबादी लगभग 35 फीसदी मानी जाती है, जो आरजेडी का कोर वोटबैंक है, इसके साथ ही अनुसूचित जाति की जनसंख्या भी करीब 21 फीसदी है।
अगर तेज प्रताप यादव निर्दलीय या किसी अन्य पार्टी के टिकट पर महुआ से चुनाव लड़ते हैं, तो यह सीधा असर आरजेडी के पारंपरिक वोटबैंक पर डाल सकता है, वोटों के बंटवारे की स्थिति बन सकती है, जिससे महागठबंधन के समीकरण बिगड़ सकते हैं। तेज प्रताप यादव के अगले राजनीतिक कदम पर सभी की निगाहें टिकी हैं क्या वे महुआ से चुनाव लड़ेंगे या फिर हसनपुर से ही किस्मत आजमाएंगे यह फिलहाल साफ नहीं है, लेकिन इतना तय है कि उनके फैसले का असर सिर्फ उनकी राजनीतिक भविष्य पर ही नहीं, बल्कि बिहार की पूरी सियासी तस्वीर पर पड़ेगा।