मध्य प्रदेश में कांग्रेस, क्या इस वजह से हो रही परेशान?

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चित्र : कांग्रेस भवन, भोपाल (मध्यप्रदेश)

भोपाल। मध्य प्रदेश में कांग्रेस (Congress) कहां है? ये बड़ा सवाल अभी भी बना हुआ है। कांग्रेस भले ही साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी (BJP) को टक्कर देने की बात कह रही हो, लेकिन ये इतना आसान नहीं है।

इतिहास के पन्नों को पलटें तो यहां कुछ ओर ही तस्वीर नजर आती है। अविभाजित मध्य प्रदेश के समय से ही कांग्रेस का जनाधार यहां से खिसकने लगा था। कांग्रेस के सामने चुनौतियां तब भी थीं और आज भी बरकरार हैं।

एक दौर था, जब राज्य की सत्ता पर कांग्रेस ने लंबे समय तक शासन किया, लेकिन समय बदला और फिर लोकसभा चुनावों में बीजेपी साल दर साल मजबूत होती रही। आंकड़े बयां करते हैं कि अविभाजित मप्र के समय से ही कांग्रेस का जनाधार कम होता चला गया।

जब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ एक ही था

  • साल 1991 में 40 में से 27 सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई।
  • 1996 के चुनाव में 40 में से 8 सीट कांग्रेस को मिली।
  • 1998 के चुनाव में 40 में से 11 सीटे मिली।
  • 1999 में 40 में से 11 सीट मिली।

2000 में छत्तीसगढ़ अलग से राज्य बनने के बाद

  • मप्र में 29 सीटों पर चुनाव होने लगे।
  • 2004 में कांग्रेस को 29 में 4 सीटें मिली।
  • 2009 में 29 में से 12 सीट मिली।
  • 2014 में 29 में से 2 सीट मिली।
  • 2019 में 29 में से 1 सीट मिली।

गौर करें तो साल 1996 में प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार थी तब कांग्रेस की मात्र 8 सीट थीं। जब केंद्र की सत्ता में 10 साल तक कांग्रेस की सरकार रही, तब भी प्रदेश में कांग्रेस को कुछ ज्यादा सीटें हासिल नही हुई।

कांग्रेस की चुनौती तब भी थी और आज भी है। साल 1991 के बाद से कांग्रेस की प्रदेश में 27 सीटों पर दुबारा कभी भी जीत नही हुई। जबकि बीजेपी का ग्राफ साल दर साल बढ़ता चला गया।

साल दर साल कांग्रेस बनाम बीजेपी का ग्राफ

वर्ष भाजपा -कांग्रेस कुल सीटें

1991- 12- 27- 40
1996- 27 -08- 40
1998- 30- 10- 40
1999- 29- 11- 40
2004- 25- 04- 29
2009- 16- 12 व 01 सीट बसपा को।
2014- 27 -02 -29
2019- 28 01 29

बीजेपी मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल बताते हैं कि कि बीते समय से ही कांग्रेस का जनाधार कम होता जा रहा है। तो वही बीजेपी का मार्जिन बढ़ता जा रहा है। यानी कि 1991 में जो बीजेपी मात्र 12 सीट लायी थी। उसने कांग्रेस को साल 2019 तक 1 सीट पर रोक दिया और अब तो साल 2024 में क्लीन स्वीप का भी दावा कर रही है।

तो वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता आनंद जाट कहते हैं कि कांग्रेस की ओर से पुराने रिकार्ड को बेहतर करने की बात कही जा रही है लेकिन कांग्रेस के लिए चुनैतियां कम नही हैं। इस बीच, राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस का अपना कोई अनुशासित संगठन नही है। नेता गुटों में बंटे नजर आते है।

गुटीय राजनीति के कारण कांग्रेस, बीजेपी से हर बार के चुनावों में पिछड़ती रही है। कांग्रेस नेता बीजेपी से लड़ने की बजाय आपस मे ही उलझे रहते है। तो वही बीजेपी के नेता जनता के बीच बने रहे और संगठन को मजबूत करने का काम करते रहे।

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