केशव का गिरता ग्राफ BJP ने तलाशा ये नया चेहरा

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उत्तर प्रदेश की विधान परिषद की सीट पर बीजेपी ने पूर्व विधायक बहोरनलाल मौर्य को उम्मीदवार बनाया था। यह सीट स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देने के चलते खाली हुई थी। वहीं सपा ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था। जिसके बाद बहोरन लाल मौर्य निर्विरोध एमएलसी का चुनाव जीत गये थे ,बता दे कि बहोरन लाल मौर्य बीजेपी के पुराने नेता हैं।बरेली की भोजीपुरा विधानसभा सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं। बहोरन लाल मौर्य पहली बार साल 1996 विधायक बने और दूसरी बार 2017 में भोजीपुरा से विधायक रहे। वह 1997 में राजस्व राज्य मंत्री रहे हैं।साल 2022 में बीजेपी ने उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाया था लेकिन वह चुनाव हार गए थे। सपा के शहजिल इस्लाम ने उन्हें परास्त किया था।ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से खाली हुई विधान परिषद सीट पर बीजेपी ने बहोरन लाल मौर्य को एमएलसी बनाकर आगामी चुनाव के सियासी समीकरण साधने का दांव चला है।माना ये भी जा रहा है कि केशव प्रसाद मौर्य की obc वोटरों के बीच में प्रभाव कम हुवा है ,क्योकि आगामी लोकसभा चुनाव में obc वोटर और sc st मतदाता भारतीय जनता पार्टी की तरफ काम आकर्षित हुए हैं ,जिसके बाद योगी सरकार ने मौर्य समाज से बहोरन लाल मौर्य को लेकर केशव प्रसाद मौर्य के साथ बड़ा खेल कर दिया हैं ,हाल ही के घटनाक्रम पर नजर डालें तो यूपी सरकार के शीर्ष नेतृत्व के दो शिखर एक-दूसरे के खिलाफ आस्तीन चढ़ाए नजर आते हैं. ये दोनों नेता एक दूसरे को मात देने की कवायद लगातार करते रहे हैं। शायद यही वजह रही है ,कि चुनाव के बाद केशव प्रसाद मौर्य अमित शाह की शरण में ज्यादा नजर आरहे हैं ,योगी सरकार पहली कैबिनेट बैठक में भी केशव प्रसाद नजर नहीं आये ,दूसरी तरफ लोगों का मानना है कि केशव प्रसाद मौर्य और बीजेपी के कुछ नेतावों के बीच सब कुछ सही नहीं चल रहा है ,इसी लिए योगी सरकार हुए लोकसभा चुनाव में मिली असफलता को उप चुनाव और 27 के विधानसभा चुनाव में दोहराना नहीं चाहती हैं ,शायद इसी लिए एक बार फिर योगी और केशव के बीच तल्खिया देखि जा सकती है ,आइये आपको बाताते कि योगी और केसव के बीच कब कब तल्खिया देखने को मिली हैं। तो सबसे पहले 2017 में ,भाजपा की सरकार बनने के बाद केशव प्रसाद मौर्य का नेमप्लेट एनेक्सी मुख्यमंत्री कार्यालय से हटा दी गई थी। विवाद बढ़ने पर दोनों लोगों का कार्यालय सचिवालय स्थित विधान भवन में स्थापित किया गया।

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केशव की अगुवाई वाली लोक निर्माण विभाग (PWD) के कामकाज की समीक्षा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद करने लगे थे। विभाग के अफसरों के साथ मुख्यमंत्री सीधे बैठक करने लगे थे। इससे केशव को दूर रखा जाता था।
मुख्यमंत्री ने PWD के कामकाज की समीक्षा शुरू की तो केशव प्रसाद मौर्य ने CM योगी के अधीन लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी में भ्रष्टाचार को लेकर मुखर हो गए। उन्होंने इसके लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जांच की मांग शुरू कर दी।
योगी आदित्यनाथ पर दर्ज मुकदमे आसानी से वापस हो गए, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य की बारी आई तो फाइलें इधर-उधर होने लगी। PMO के हस्तक्षेप के बाद केशव के खिलाफ दर्ज मुकदमें हटा दिए गए।
PWD के एमडी की नियुक्ति भी मुख्यमंत्री कार्यालय से होती थी। केशव जिन अफसरों का नाम सुझाव में देते थे, उन्हें नहीं नियुक्त किया जाता था।
PWD निर्माण संबंधित जारी किए जा रहे बजट में मुख्यमंत्री कार्यालय के द्वारा बीते 4 साल में कई बार फाइलें वापस कर दी गई जिसको लेकर केशव प्रसाद मौर्य और मुख्यमंत्री कार्यालय में कई बार हंगामा हुआ।

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