कर्नाटक में इन दिनों एक बड़ी राजनीतिक बहस छिड़ गई है। राज्य के ग्रामीण विकास, पंचायती राज, आईटी और बीटी मंत्री प्रियंक खड़गे ने सरकार से आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की गतिविधियों पर सरकारी परिसरों में रोक लगाने की मांग की है। उनके इस बयान के बाद राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है।
खड़गे ने लिखा मुख्यमंत्री को पत्र
प्रियंक खड़गे ने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर कहा था कि सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक स्थलों पर आयोजित की जाने वाली आरएसएस की शाखाएं समाज में विभाजनकारी विचारधारा फैला रही हैं, जिससे युवाओं पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। उन्होंने आग्रह किया था कि इस तरह की गतिविधियों पर तुरंत रोक लगाई जाए ताकि सरकारी संस्थान धार्मिक या वैचारिक प्रभावों से मुक्त रहें।
आरएसएस पर उठा सवाल
हालांकि, इस मांग के बाद प्रियंक खड़गे ने दावा किया है कि उन्हें और उनके परिवार को धमकियों और अपशब्दों का सामना करना पड़ रहा है। अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने लिखा, “पिछले दो दिनों से मेरा फोन लगातार बज रहा है। मुझे और मेरे परिवार को गालियां और धमकियां दी जा रही हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि मैंने आरएसएस की गतिविधियों पर सवाल उठाया है।” उन्होंने आगे कहा कि उन्हें इन धमकियों से कोई डर नहीं है। प्रियंक खड़गे ने लिखा, “जब आरएसएस ने महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर को नहीं छोड़ा, तो मुझे क्यों छोड़ेगा? लेकिन मैं डरूंगा नहीं। यह संघर्ष अब शुरू हुआ है।”
विचारधारा के वायरस से मुक्त
आपको बता दें… इस पर मंत्री ने स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य किसी संस्था या व्यक्ति पर हमला करना नहीं है, बल्कि एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जो बुद्ध, बसवन्ना और डॉ. अंबेडकर के सिद्धांतों पर आधारित हो — जहां समानता, करुणा और तर्क का भाव हो। उन्होंने कहा कि देश को उस “विचारधारा के वायरस” से मुक्त करना जरूरी है जो समाज को बांटने का काम करती है।
बयान से हुई कर्नाटक की राजनीति में गरमाहट
प्रियंक खड़गे के इस बयान के बाद कर्नाटक की राजनीति में गरमाहट बढ़ गई है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया है, जबकि समर्थक उन्हें साहसी और स्पष्टवादी नेता बता रहे हैं।बिहार चुनाव 2025 में BJP ने जारी की पहली उम्मीदवार सूची, मिल बड़े नेताओं को मिला दोबारा मौका