आज इस एपिसोड मे बात उस भगवती देवी(Bhagwati Devi) की जिन्होंने पत्थर तोड़ने के के साथ-साथ समाज के उन विचारों को भी समय के साथ चकनाचूर कर दिया जो एक महिला के विकास मे बाधक थे। वो भगवती देवी जिनके विमर्श के केंद्र मे हमेशा वह समाज रहा जो हाशिये पर खड़ा था। 90 के दशक मे बिहार का परिवेश सामाजिक न्याय के रास्ते पर अग्रसर था उस दौर मे इसके अगुआ थे लालू प्रसाद यादव समय के चक्र को ढाई दशक पीछे लें चलते हैं और आपको बताते हैं कि कैसे पत्थर तोड़ने वाली भगवती देवी बिहार के गया से निकलकर संसद तक पहुंची। भगवती देवी पत्थर तोड़कर अपना परिवार चलाती थीं रोज की भांति ही एक दिन वो महिलाओं से उनके अधिकारों को लेकर चर्चा कर रही थीं और उनकी बातों को उस दौर के समाजवादी नेता उपेन्द्रनाथ वर्मा नें सुना और प्रभावित हुए इसके बाद उन्होंने अन्य समाजवादी नेताओं सें भगवती देवी और उनके विचारों की चर्चा की राममनोहर लोहिया(Ram Manohar Lohia) भी इन बातों से खूब प्रभावित हुए।

Bhagwati Devi: राजनीतिक सफर की शुरूआत
सन् 1969 के विधानसभा चुनाव में राम मनोहर लोहिया(Ram Manohar Lohia) की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से भगवती देवी बाराचट्टी विधानसभा(Barachatti Assembly Constituency) से चुनाव लड़ीं और जीतकर विधानसभा पहुंच गईं।
यही से भगवती देवी(Bhagwati Devi) के राजनीतिक सफर की शुरूआत हुई। 1972 के चुनाव में वह विधानसभा का चुनाव हार गईं, लेकिन 1977 में फिर से विधायक बन गईं। 1980 में वह फिर चुनाव हारीं। जिसके बाद भगवती देवी राजनीति से दूर हो गईं और फिर से अपने काम मे लग गईं। आरजेडी(RJD) नें भगवती देवी के लिए पुनः राजनीति में वापसी के द्वारा खोलें, लालू प्रसाद यादव(Lalu Prasad Yadav) अक्सर अपनें राजनैतिक फैसलों की वजह से चर्चा में रहते थे समय-समय पर उन्होंने तमाम ऐसे फैसले लिए जिनका जिक्र होता है ऐसा ही एक फैसला था सन् 1995 में भगवती देवी(Bhagwati Devi) को राष्ट्रीय जनता दल से चुनाव लड़ाने का। भगवती देवी(Bhagwati Devi) चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची। 1 वर्ष बाद ही लोकसभा के चुनाव में भी लालू ने अपनी पार्टी से भगवती देवी को लोकसभा का टिकट दिया और वह जीत कर सांसद भी पहुंची। आज के दौर मे भगवती देवी(Bhagwati Devi) के सदन मे दिए गए भाषणों की भी खूब चर्चा होती है। जाती प्रथा पर भी उन्होंने क्या खूब बोला “यह हिंदुस्तान है और यहाँ तरह-तरह के धर्म मानने वाले लोग हैं, जब आदि युग आया तो आदि गुरु शंकर हुए, जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों हो आए, तो इतनी जातियाँ कहाँ से आ गईं?” भगवती देवी ने आगे कहा: “जाति तो तब आती है जब सत्ता में बैठे लोगों पर परेशानी आती है। इसीलिए जब लालू प्रसाद यादव को लोगों का साथ मिल रहा है, तो कुछ लोगों के पेट में चूहे क्यों कूद रहे हैं? जाति तो आपने ही बनाई थी। गले में घंटी, झाड़ू और मिट्टी के बर्तन को बाँध दिया। देवी-देवताओं को छूने नहीं दिया, लेकिन उन्हें बनाते तो छोटे जाति के लोग ही हैं। इन्हीं देवी-देवताओं को पूजने के लिए बाबा जी हैं।”
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Bhagwati Devi: महिलाओं के हक के लिए उठाई आवाज
धरातल से से उठकर कैसे कोई महिला देश की संसद में आधी आबादी की आवाज बुलंद करने लगती है इसका जीवंत उदाहरण भगवती देवी(Bhagwati Devi) का सियासी सफर है। एक पत्थर तोड़ने वाली उस दौर मे महिला महज विधानसभा और लोकसभा ही नहीं पहुंची बल्कि अपने संसदीय जीवन में महिलाओं के अधिकारों की आवाज भी बनीं। मजदूरी करके जीवन यापन करने वाली भगवती देवी शुरू से गरीबो के हक़ और हकूक के लिए संघर्षरत रहती थीं।