सावन के चढ़ते मन से क्यों उतरने लगता है मांसाहारी भोजन

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Why does non-vegetarian food start to decline with the rising mood of Sawan?

सावन आते ही बहुत से लोगों की जीवनशैली में बदलाव देखने को मिलता है। सबसे बड़ा परिवर्तन खानपान में मांसाहार से दूरी का होता है। यह कोई एक-दो जगह की बात नहीं, बल्कि देशभर में श्रद्धालुओं और आम लोगों के व्यवहार में दिखने वाला एक बड़ा सामाजिक और सांस्कृतिक ट्रेंड है। सवाल है— आख़िर क्या वजह है कि जैसे-जैसे सावन चढ़ता है, मांसाहार उतरने लगता है?

  • पहला पहलू: श्रद्धा और शास्त्र की छाया

सावन मास हिन्दू परंपरा में भगवान शिव को समर्पित होता है। इस पूरे माह में व्रत, उपवास, रुद्राभिषेक और भोलेनाथ की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस समय को “सात्त्विक जीवन शैली” के पालन का समय माना गया है।

शास्त्रों में मांस, मछली, अंडा जैसे तामसिक और रजसिक भोजन को नकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा माना गया है। मान्यता है कि इस प्रकार का आहार मन को अशांत करता है और साधना, भक्ति या शिव-आराधना के अनुकूल नहीं होता।

सावन के सोमवार, हरियाली तीज, नागपंचमी जैसे पर्व इस माह को विशेष बनाते हैं, जिनमें शुद्धता, संयम और भक्ति की भावना प्रबल रहती है। ऐसे में बहुत से लोग मांसाहारी भोजन से स्वेच्छा से परहेज़ करते हैं—चाहे वे रोज़ खाते हों या केवल कभी-कभी।

  • दूसरा पहलू: मौसम और मांस—एक वैज्ञानिक दृष्टि

सावन यानी जुलाई-अगस्त के महीने। यह वह समय है जब मानसून अपने चरम पर होता है। बारिश और नमी के कारण वातावरण में बैक्टीरिया, वायरस और अन्य सूक्ष्म कीटाणु सक्रिय हो जाते हैं। यही वह कारण है जब शरीर का पाचन तंत्र भी कुछ कमजोर हो जाता है।

मांसाहार की प्रवृत्ति है कि वह जल्दी खराब होता है और उसमें हानिकारक जीवाणु जल्दी पनपते हैं। इस वजह से मानसून में मांस खाने से फूड पॉइजनिंग, पेचिश, डायरिया, टाइफाइड, और त्वचा रोगों तक का ख़तरा बढ़ जाता है।

चिकित्सकों की राय भी यही है कि इस मौसम में ताज़ा, हल्का, शाकाहारी और सुपाच्य आहार शरीर के लिए अधिक अनुकूल होता है।

  • बाज़ार में भी दिखता है असर

इस ऋतु में सिर्फ श्रद्धा नहीं, बिक्री और व्यवसाय में भी फर्क देखा जाता है। होटल, रेस्टोरेंट, और नॉनवेज स्टॉल्स में बिक्री घटती है। कई स्थानों पर तो मांस की दुकानों को बंद तक करवा दिया जाता है—विशेष रूप से मंदिरों और शिवालयों के आस-पास।

वहीं दूसरी ओर, फल, दूध, दही, हरी सब्ज़ियों की मांग बढ़ जाती है। कई होटल सावन के ‘व्रत स्पेशल थाली’ भी लॉन्च करते हैं। सावन कोई साधारण महीना नहीं, यह संयम, साधना और स्वच्छता का महोत्सव है। जब आस्था और वैज्ञानिक सोच एक साथ चलें, तो परंपरा में प्रगति का बीज अपने आप जुड़ जाता है। शायद यही वजह है कि सावन के चढ़ते मन में मांसाहारी भोजन खुद-ब-खुद उतरने लगता है।

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