चित्र : चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर।
भोपाल। राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर का कहना है, बीजेपी ‘अपने दम पर’ कुल 543 लोकसभा सीटों में से 370 सीटें जीतने की संभावना ‘शून्य के करीब’ है। यह बात उन्होंने हालही में दिए एक इंटरव्यू में कही। उनका कहना है कि बीजेपी का 370 का लक्ष्य उसके ‘मनोवैज्ञानिक’ युद्ध का हिस्सा है।
यह इंटरव्यू प्रशांत किशोर ने इंडिया टुडे को दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह मनोवैज्ञानिक बात है। यह बीजेपी के लिए कोई ठोस खेल नहीं है। यह विपक्ष के लिए एक मनोवैज्ञानिक झटका है। बता दें कि बीते दिनों प्रशांत किशोर ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा था कि बीजेपी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ‘अपने प्रदर्शन में काफी सुधार कर सकता है’।
उन्होंने कहा था कि कहानी अब इस बात पर केंद्रित हो गई है कि बीजेपी-एनडीए जीत रही है या हार रही है, और यह कि बीजेपी को 370 सीटें मिलेंगी या नहीं।
इन दोनों ही इंटरव्यू के आधार पर किए विश्लेषण पर गौर करें तो पाएंगे कि बिहार में बीजेपी को कोई फायदा नहीं होने वाला है। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के प्रमुख नीतीश कुमार को एनडीए में वापस लाकर बीजेपी ने विपक्ष को ‘मनोवैज्ञानिक झटका’ दिया है।
चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का मानना है कि….
- बिहार में सीटें बढ़ाने के लिए बीजेपी ने नीतीश कुमार को एनडीए में वापस नहीं लिया।
- उन्होंने संकेत दिया कि बिहार में लोकसभा या विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कोई खास फायदा नहीं होगा।
- इंडिया टुडे के इंटरव्यू में कहा था, ‘अगर आप देखें तो नीतीश कुमार को हटाने के बाद बिहार में बीजेपी की अपनी सीटें कम हो जाएंगी, क्योंकि वे कम सीटों पर लड़ेंगे।’
प्रशांत किशोर कहते हैं कि भले ही एनडीए 370-400 सीटें जीत ले, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत में असहमति के लिए कोई जगह नहीं है। भारत ने ‘400 से ज़्यादा सांसदों वाली बड़ी सरकारें देखी हैं’। कांग्रेस के पास अपने चरम पर भारत में उपलब्ध 4,000 MLA सीटों में से 2500 विधायक हुआ करते थे। यह बात उन्होंने न्यू इंडियन एक्सप्रेस के इंटरव्यू में कही साथ ही यह भी कहा ‘लेकिन बीजेपी के पास अपने चरम पर लगभग 15,00-16,00 विधायक हैं।’
इसी इंटरव्यू में वो आगे कहते हैं, ‘जैसे कोई भी पार्टी, कोई भी नेता श्री मोदी जितना लोकप्रिय और प्रभावशाली नहीं है। यह वैसा नहीं है।’ हालांकि, प्रशांत यहां इस बात को भी जोड़ते हैं कि 70 के दशक की शुरुआत में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का भी ‘ऐसा ही प्रभाव था’।