प्रतीकात्मक चित्र।
ग्लोबल वार्मिंग, जो पारिस्थितिकी तंत्र के नाजुक संतुलन को बिगाड़ सकती है, अब पर्वतीय क्षेत्रों में प्रजातियों के अस्तित्व के लिए एक बड़ा मुद्दा बन रही है। एक नए अध्ययन से पता चला है कि दुनिया भर के 17 पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाली प्रजातियां ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण विलुप्त होने के कगार पर हैं।
यह रिसर्च, नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। हालांकि इस बात की जानकारी पहले से ही है कि ग्लेशियरों के पीछे हटने, वनस्पति क्षेत्रों में बदलाव और जैव विविधता के नुकसान जैसी घटनाएं किस तरह से पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र पर कहर ढा सकती हैं। शोधकर्ताओं (रिसर्चर) की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अब इन क्षेत्रों में ग्लोबल वार्मिंग के खतरनाक परिणामों पर नए सिरे से प्रकाश डाला है।
बता दें कि ताइवान के एकेडेमिया सिनिका के नेतृत्व में टीम द्वारा किए गए अध्ययन में विभिन्न क्षेत्रों में पहाड़ी क्षेत्रों की पहचान की गई, जो ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं। इन जोखिमग्रस्त क्षेत्रों में पूर्वोत्तर एशिया, ईरान-पाकिस्तान बेल्ट, पश्चिमी अमेरिका, ब्राजील के उच्चभूमि, भूमध्यसागरीय बेसिन और मैक्सिको शामिल हैं।
रिसर्च टीम ने वैश्विक स्तर पर पहाड़ी क्षेत्रों में मौसम संबंधी निगरानी स्टेशनों पर भी जोर दिया है क्योंकि वे मौसम के पैटर्न और पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र के बीच की बातचीत को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये स्टेशन तापमान, हवा के पैटर्न, वर्षा, आर्द्रता और अन्य मौसम संबंधी मापदंडों पर मूल्यवान डेटा प्रदान करते हैं।
अध्ययन के मुख्य लेखक डॉ. वेई-पिंग शैन ने कथित तौर पर बताया, ‘जापान की तरह ताइवान के पहाड़ी क्षेत्र महाद्वीपीय क्षेत्रों की तुलना में आर्द्रता-प्रेरित उच्च वेगों से अधिक प्रभावित होते हैं। हमारा अध्ययन बताता है कि दुनिया भर के पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान समतापी बदलावों की परिवर्तनशीलता को पूरी तरह से समझने के लिए आर्द्रता का हिसाब रखना महत्वपूर्ण है।’
शेन ने स्वीकार किया कि पहाड़ों से मौसम संबंधी अवलोकन डेटा की कमी हमारे अध्ययन की सबसे मूल्यवान और सबसे बड़ी चुनौती है।