अक्सर एक मुहावरा सुनने को मिलता है कि ‘मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसे उसकी मजदूरी मिल जानी चाहिए’ आज एक मई यानि कि मजदूर दिवस है। मजदूर दिवस श्रमिकों के संघर्ष और बलिदान का परिचायक है। मजदूरों के हक और अधिकारों के लिए एक बड़ा आंदोलन हुआ आज 8 घंटे कार्य और हफ्ते मे एक दिन का अवकाश उसी आंदोलन की देन है।
Also Read: पाबंदी अंत की ओर बढ़ती ‘भयभीत सत्ता’ की निशानी होती है- अखिलेश

साल था 1886 शिकागो के हेमार्केट में अनियमित कार्य अवधि और अवकाश की मांग को लेकर मजदूर आंदोलित हुए हालांकि मजदूरों का यह आंदोलन आगे चलकर हिंसक हो गया लेकिन इसी आंदोलन की वजह से मजदूर दिवस मनाएं जाने की मजबूत आधार शिला रखी। भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत चेन्नई से 1923 में हुई। मजदूर दिवस मनाए जाने की शुरुआत हुए आज 100 साल से ज्यादा का समय हो गया परन्तु इन 100 सालों में श्रमिकों के जीवन में क्या बदलाव हुए ये विचारणीय है। आज के आधुनिक युग में तमाम स्थानों पर मजदूरों के सामने कार्य अवधि और वेतन की विसंगतियों के मामले जब प्रकाश में आते हैं तब श्रमिक दिवस और भी प्रासंगिक हो जाता है।