अरविन्द केजरीवाल और अखिलेश यादव की मुलाकात के क्या है सियासी मायने

जनसँख्या के दृष्टिकोण से देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश अपनी सियासत के लिए देश भर में जाना जाता हैं। देश भर में एक बार फिर सियासत गर्मा गयी है वजह बने है अरविन्द केजरीवाल।

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दरसल समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मुलाकात करेंगे। केजरीवाल प्रशासनिक अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकार पर केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों का साथ पाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। इस मसले पर वह पूरे देश की परिक्रमा कर चुके हैं। अब तक केजरीवाल को कई पार्टी नेताओं का समर्थन मिल चुका है। वहीं अब अरविंद केजरीवाल आज समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से मिलने लखनऊ आ रहे हैं।माना जा रहा है यहाँ वो केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ समर्थन मांगेंगे। साथ ही लोकसभा चुनाव, विपक्षी एकता सहित सियासी मुद्दों पर चर्चा भी करेंगे। । गौरतलब है कि इससे पहले आप नेता केजरीवाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के सीएम नीतीश कुमार, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, तमिलाडु के सीएम एमके स्टालिन, तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के चीफ शरद पवार, महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे सहित कई नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं ।

आइये अब हम आपको बताते है कि आखिर किस मुद्दे को लेकर दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल लगातार विपक्ष को साथ लाने के लिए परेशान है और वो विपक्ष के नेतावों से क्या चाहते हैं। दरसल केंद्र सरकार ने पोस्टिंग और ट्रांसफर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को पलटकर अध्यादेश लेकर आयी है जिसमे दिल्ली सरकार के पावर को काम कर दिया है। अब आप सोच रहें होंगे कि केंद्र सरकार के उस अध्यादेश में ऐसे क्या जिससे केजरीवाल विपक्षी नेतावों का समर्थन जुटा रहे है तो आइये हम आपको सरल शब्दो में समझाते हैं। सरल शब्दों में कहें तो इस अध्यादेश के तहत अधिकारियों की ट्रांसफ़र और पोस्टिंग से जुड़ा आख़िरी फैसला लेने का हक़ उपराज्यपाल को वापस दे दिया गया है.यानिकि दिल्ली के मुख्यमंत्री,दिल्ली के मुख्य सचिव ,दिल्ली के गृह प्रधान सचिव ए ग्रेड के अधिकारियों की ट्रांसफ़र और पोस्टिंग से जुड़ा फैसला ले तो सकते है लेकिन आखिरी मुहर यानिकि आख़िरी फैसला उपराज्यपाल ही लेंगे तो समझने वाली बात ये है कि कुल मिलकर उपराज्यपाल चाहेंगे तो किसी अधिकारी की ट्रांसफर पोस्टिंग होगी और नहीं चाहेंगे तो नहीं होगी।

अब ये भी आप को जानना बहुत जरुरी है कि अध्यादेश लाने के पीछे केंद्र सरकार का तर्क क्या है .केंद्र सरकार ने कहा है कि दिल्ली देश की राजधानी है. ‘पूरे देश का इस पर हक़ है’ और पिछले कुछ समय से अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की ‘प्रशासनिक गरिमा को नुकसान’ पहुंचाया है. दिल्ली में ”कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थान और अथॉरिटी जैसे राष्ट्रपति भवन, संसद, सुप्रीम कोर्ट है . कई संवैधानिक पदाधिकारी जैसे- सभी देशों के राजनयिक दिल्ली में रहते हैं और अगर कोई भी प्रशासनिक भूल होती है तो इससे पूरी दुनिया में देश की छवि धूमिल होगी.”

केंद्र सरकार का कहना है कि राजधानी में लिया गया कोई भी फैसला या आयोजन न केवल यहां के स्थानीय लोगों, बल्कि देश के बाकी नागरिकों को भी प्रभावित करता है.इस लिए ये अध्यादेश लाना जरुरी है वहीं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का कहना है कि ये केंद्र सरकार की मनमानी है जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं मानती। हम इस अध्यादेश को किसी भी हालत में कानून बनने से रोकेंगे। अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या अरविन्द केजरीवाल राज्यसभा में केंद्र सरकार के अध्यादेश को कानून बनने से रोक पायेंगे और क्या केजरीवाल विपक्षी नेतावों के साथ लोकसभा चुनाव में मोदी के विजय रथ को रोक पायेंगे

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