जैसे शिव अनूठे है वैसे ही उनके गण उनके भक्त भी अनूठे होते है, शिव भक्तों की आस्था का पवित्र मास श्रावण गतिमान है, श्रावण मास के समय में ही भगवान शिव का हिम रूपी दर्शन उनके करोड़ों भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र बनता है,
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अत्यंत दुर्गम रास्ते, कठिनाई और पल पल चुनौती भरे रास्तों से होते हुए अपनी चरम आस्था के सैलाब के साथ भक्तगण बम बोल के जयकारों सहित तमाम बाधाओं को पार करते हुए हिम रूपी शिवलिंग के दर्शन करने पंहुचते है, जी हां हम बात कर रहे देवो के देव, अनादि अनंत और अपने भक्तो की हर मंशा पूरी करने वाले भोले शंकर की पवित्र अमरनाथ यात्रा की। जहा प्रत्येक वर्ष करोड़ों की संख्या में भक्तगण उनके दर्शन करने पंहुचते है, लेकिन इनमे कुछ ऐसे खास भक्त भी होते है जो भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अलग रास्ता चुनते है और वो रास्ता होता है सेवा का, और सेवा भी ऐसी जो इतने दुर्गम रास्तों पर, कंदराओं के मध्य विषम परिस्थितियों में लगभग 13हजार फीट की ऊंचाई पर जाकर लोगो को अन्न जल पंहुचाने की, एक ऐसी सेवा जो भक्ति को नया आयाम देती है।

अमरनाथ की यह विचित्र यात्रा शुरू होती हैं यूपी के बाराबंकी से, जहां एक शिवभक्त जिनका नाम भी कैलाश है, उनकी श्रद्धा शिव में ऐसी कि उन्होंने एक ऐसा बीड़ा उठाया जो अपने आप में अलग था अनूठा था, उन्होंने फैसला किया कि वह शिवभक्ति में अपना जीवन समर्पित कर देंगे उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नही देखा, यात्रा के ठीक पहले वह भंडारे में प्रयुक्त होने वाली सामग्री एकत्रित करना शुरू कर देते है, इस दौरान कैलाश शर्मा ने बताया कि आखिर कैसे इस सफर की शुरुवात हुई। सबसे पहले इस भंडारे को लगाने की अनुमति नहीं मिल सकी थी, जिसको लेकर तत्कालीन मंत्री रहे बेनी प्रसाद वर्मा को पत्रालेख़ भी करना पड़ा था जिसके उपरांत से यह क्रम निरंतर चला आ रहा है और हजारों की संख्या में भोले भक्त भंडारे का प्रसाद ग्रहण करते है

शिवभक्ति का ऐसा नजारा शायद ही कही देखने को मिलता हो, अकेले शुरू गया यह सफर अब एक समिति का रूप ले चुका है और इसमें हर वर्ग हर जाति के लोग शामिल होकर निस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे है, इस बार भी 10वा विशाल भंडारा अपने गंतव्य को रवाना हो चुका है, भंडारा रवाना होने के पूर्व विधिवत पूजा अर्चन किया जाता है, दलीय सीमाएं भी इस आयोजन में टूट जाती है, हर राजनीतिक दल के लोग इस कार्यक्रम में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते है, पूरे नगर में पूरे उत्साह से शोभायात्रा निकाली जाती है जिसमे भक्तो का उत्साह भी अपने चरम पर होता है, नाचते गाते भोले के गण जयकारों से आकाश गुंजायमान कर देते है।

विभिन्न जटिल प्रक्रियाओं से गुजरने वाली यह यात्रा शिव आस्था के कारण आसान हो जाती है, आज यह भंडारा यूपी का पहला ऐसा भंडारा बन चुका है जो अमरनाथ में सर्वाधिक ऊंचाई पर लगने वाले भंडारे की उपमा प्राप्त कर चुका है, इस समिति की ऐसी अनुपम सेवा देखकर तत्कालीन राज्यपाल श्री बोरा के द्वारा और भारतीय सेना के द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है, हालांकि अभी यूपी सरकार का ध्यान इस तरफ आकर्षित नही हो पाया है संभवत भविष्य में इस समिति के ऐसे निस्वार्थ सेवा को देखते हुए सूबे के मुखिया इस समिति को सम्मानित करने का विचार अवश्य करेंगे।

भारत का दूसरा एवम यूपी का पहला सबसे ऊंचाई पर लगने वाला भंडारा अपनी भव्यता को प्राप्त हो रहा है, 10 हजार फीट की ऊंचाई पर जहा सांस लेना दूभर हो जाता है, लगभग साढ़े बारह हजार फीट की ऊंचाई पर जहा भोलेनाथ स्वयं हिम रूप में विराजमान होते है, उसी भी अधिक ऊंचाई पर निर्बाध रूप से लगने वाला यह भंडारा निश्चित है शिव भगवान के आशीर्वाद का कमाल है, इस भंडारे में क्या अमीर क्या गरीब हर कोई भोजन करता है, शिवभक्त जमकर नृत्य कर भक्ति में लीन रहते है, आवारा हवाओ के बीच मजबूती से बेस कैंप पर लगने वाले इस भंडारे की रक्षा स्वयं भोलेनाथ करते है, इस संस्था को भी नही मालूम होता है कि भंडारे में अनुमानित खर्च जो लगभग 50 से 55 लाख ₹ का होता है उसका प्रबंध कहा से होता है, इस समिति की शिवभक्त रूपी सदस्य कैसे पूरे देश में बढ़ते जा रहे किसी को नहीं पता लेकिन हर सदस्य का यह मानना है कि वह सभी इस विहंगम भंडारे को मात्र शिव के आदेश से ही संचालित कर पा रहे।
स्टोरी बाराबंकी
रिपोर्ट: नितेश मिश्रा