एमपी के छिंदवाड़ा के एक गांव में एक बरगद का कुनबा 5 एकड़ में फैला हुआ है। इस बरगद के पेड़ के नाम से गांव को पहचान मिल गई है जो कि कौमी एकता की मिसाल पेश करती है
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यहां हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है।एमपी के छिंदवाड़ा इलाके का गांव बड़चिचौली….जो पूरा गांव एक बरगद की बदौलत बस पाया.इसके बाद बरगद यानि बढ़ के ही नाम पर इसे कहा जाने लगा बडचिचौली. संभवत एमपी में बरगद की बदौलत बसाया और उसी पर नाम पाया ये इकलौता गांव है.आइए जानते हैं क्या है छिंदवाड़ा के बड़चिचोली के बरगद क पेड़ की कहानी और क्यों दी जाती है, यहां की कौमी एकता की मिसाल.

करीब 5 एकड़ में फैला एक बरगद का कुनबा: क्या कभी सोचा है… करीब 5 एकड़ जमीन में सिर्फ एक बरगद ने अपनी सल्तनत बना रखी है, एक पेड़ से ही अब हजारों पेड़ इस वाटिका में नजर आते हैं.जी हां ऐसा ही है, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के एक गांव के मालगुजार मधुकरराव बताते हैं कि “पहले इस गांव का नाम चिचोली था. गांव के नजदीक सालों पहले एक बरगद का पेड़ हुआ करता था, धीरे-धीरे बरगद का पेड़ करीब 5 एकड़ जमीन में फैल गया. एक दौर था जब घना जंगल होता था, वहां पर लोग जाने से भी डरते थे, लेकिन धीरे-धीरे जब विकास होता गया तो फिर इसी में से कई पेड़ काट दिए गए, लेकिन अभी भी करीब 5 एकड़ जमीन में हजारों बरगद के पेड़ एक ही पेड़ की शाखा से तैयार हुए हैं.इसी पेड़ के कारण अब गांव का नाम बरगद (बड़) यानि बड़चिचोली हो गया
दरगाह के साथ मंदिर, कौमी एकता की मिसाल:इसी विशाल बरगद के नीचे बैठकर हजरत बाबा फरीद र.ह ने कई दिनों तक इबादत की थी,इसके साथ ही हजरत बाबा फरीद र.ह की दरगाह के बगल में भगवान शंकर का और भगवान गणेश का मंदिर कौमी एकता की मिसाल के लिए जाने जाते हैं,जहां हर दिन सैकड़ों लोग हाजिरी लगाने के लिए और पूजा करने के लिए पहुंचते हैं इस एक ही परिसर में जहां हर साल हज़रत बाबा फरीद र.ह के नाम पर उर्स का आयोजन होता है तो ही भगवान शंकर और हनुमान जी के लिए पूजा भी की जाती है मुस्लिम धर्म के लोग यहां पर पहुंचकर हाजरी लगाते हैं यहां महाराष्ट्र एमपी सहित अन्य राज्यों के अनुयाई बड़ी संख्या में पहुंचकर दरबार में हाजिरी लगाकर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और हिंदू धर्म के लोग यहां पहुंच कर पूजा-अर्चना करते हैं.
कहा जाता है कि इस बरगद के पेड़ का दूध या फल खाने से कई रोग ठीक हो जाते हैं।दरगाह परिसर के समीप पर बावली बनी हुई है जो कि कुआं बना हुआ है जिसका पानी कम नहीं होता। लोगों ने बताया कि यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु और अनुयाई बोतल या फिर अन चीजों में पानी ले जाते हैं जिससे उन्हें अन्य बीमारियों में आराम लगता है
एमपी के छिंदवाड़ा के एक गांव में एक बरगद का कुनबा 5 एकड़ में फैला हुआ है। इस बरगद के पेड़ के नाम से गांव को पहचान मिल गई है जो कि कौमी एकता की मिसाल पेश करती है यहां हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है।

एमपी के छिंदवाड़ा इलाके का गांव बड़चिचौली….जो पूरा गांव एक बरगद की बदौलत बस पाया.इसके बाद बरगद यानि बढ़ के ही नाम पर इसे कहा जाने लगा बडचिचौली. संभवत एमपी में बरगद की बदौलत बसाया और उसी पर नाम पाया ये इकलौता गांव है.आइए जानते हैं क्या है छिंदवाड़ा के बड़चिचोली के बरगद क पेड़ की कहानी और क्यों दी जाती है, यहां की कौमी एकता की मिसाल. करीब 5 एकड़ में फैला एक बरगद का कुनबा: क्या कभी सोचा है…

करीब 5 एकड़ जमीन में सिर्फ एक बरगद ने अपनी सल्तनत बना रखी है, एक पेड़ से ही अब हजारों पेड़ इस वाटिका में नजर आते हैं.जी हां ऐसा ही है, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के एक गांव के मालगुजार मधुकरराव बताते हैं कि “पहले इस गांव का नाम चिचोली था. गांव के नजदीक सालों पहले एक बरगद का पेड़ हुआ करता था, धीरे-धीरे बरगद का पेड़ करीब 5 एकड़ जमीन में फैल गया. एक दौर था जब घना जंगल होता था, वहां पर लोग जाने से भी डरते थे, लेकिन धीरे-धीरे जब विकास होता गया तो फिर इसी में से कई पेड़ काट दिए गए, लेकिन अभी भी करीब 5 एकड़ जमीन में हजारों बरगद के पेड़ एक ही पेड़ की शाखा से तैयार हुए हैं.इसी पेड़ के कारण अब गांव का नाम बरगद (बड़) यानि बड़चिचोली हो गया

दरगाह के साथ मंदिर, कौमी एकता की मिसाल:इसी विशाल बरगद के नीचे बैठकर हजरत बाबा फरीद र.ह ने कई दिनों तक इबादत की थी,इसके साथ ही हजरत बाबा फरीद र.ह की दरगाह के बगल में भगवान शंकर का और भगवान गणेश का मंदिर कौमी एकता की मिसाल के लिए जाने जाते हैं,जहां हर दिन सैकड़ों लोग हाजिरी लगाने के लिए और पूजा करने के लिए पहुंचते हैं इस एक ही परिसर में जहां हर साल हज़रत बाबा फरीद र.ह के नाम पर उर्स का आयोजन होता है तो ही भगवान शंकर और हनुमान जी के लिए पूजा भी की जाती है मुस्लिम धर्म के लोग यहां पर पहुंचकर हाजरी लगाते हैं यहां महाराष्ट्र एमपी सहित अन्य राज्यों के अनुयाई बड़ी संख्या में पहुंचकर दरबार में हाजिरी लगाकर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और हिंदू धर्म के लोग यहां पहुंच कर पूजा-अर्चना करते हैं.

कहा जाता है कि इस बरगद के पेड़ का दूध या फल खाने से कई रोग ठीक हो जाते हैं।दरगाह परिसर के समीप पर बावली बनी हुई है जो कि कुआं बना हुआ है जिसका पानी कम नहीं होता। लोगों ने बताया कि यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु और अनुयाई बोतल या फिर अन चीजों में पानी ले जाते हैं जिससे उन्हें अन्य बीमारियों में आराम लगता है