गोवर्धन मार्ग पर बसा गांव अडींग आजादी के शिल्पकारों की भूमि रहा है। यहां की मिट्टी में आज भी ब्रजभूमि के रणबांकुरों की शौर्यगाथा की खुशबू आती है। अंग्रेजी हुकूमत ने ब्रज क्षेत्र में साल 1857 की क्रांति को कुचलने के लिए 70 ठाकुर ग्रामीणों को फांसी पर चढ़ा दिया था।
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महीनों तक ग्रामीणों पर बर्बर जुल्म ढाए गए। खंडहर के रूप में मौजूद भरतपुर में नरेश सूरजमल की हवेली हंसते-हंसते मौत को गले लगाने वाले आजादी के दीवानों की आज भी गवाह बनी हुई है। यहां के लोगों का स्वाधीनता आंदोलन में योगदान इतिहास के पन्नों पर अंकित है। अडींग में आजादी के आंदोलनों की बढ़ती संख्या के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने यहां पुलिस चौकी की स्थापना कर दी थी। साल 1857 के गदर के समय एक सिपाही अख्तियार ने बैरकपुर छावनी में कंपनी कमांडर को गोली से उड़ा दिया। इतिहास खंगालें तो बैरकपुर छावनी से मेरठ होते हुए देश में जगह-जगह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की पुकार सुनाई देने लगी। वही मथुरा में भी क्रांति की चिंगारी सुलग उठी। यहां के एक ही समुदाय के 70 परिवारों को अंग्रेजों ने ऐतिहासिक किले पर फांसी दे दी। 30 मई 1857 को घटी इस घटना के बाद इस वीर ने अपने साथियों के साथ आगरा जा रहे राजकोष के साढ़े चार लाख रूपए को लूट लिया।

तांबे के सिक्के और आभूषण छोड़ दिए गए। इन फैक्ट्री विद्रोही सिपाहियों ने जेल तोड़कर क्रांतिकारियों को निकाला और दिल्ली की ओर कूच कर गए। इतिहास बताता है कि 31 मई को इन लोगों ने कोसी पुलिस स्टेशन पर पुलिस बंगले में जमकर लूटपाट की। उन्होंने अंग्रेजों की मुखबिरी के संदेह में हाथरस के राजा गोविंद सिंह को भी वृंदावन स्थित केसी घाट पर मौत की नींद सुला दिया। वही खंडार ऊंची हवेली आज भी 18 57 की क्रांति की गवा बनी हुई है यहां के लोग यहां अब शहीद स्मारक बनवाने की मांग कर रहे हैं।