समय जरूर बदला पर उसके तौर तरीके नहीं बदले, बात है सिवान के चर्चित साहेब की यानि मोहम्मद शहाबुद्दीन (Mohammad Shahabuddin) की। अपराध की दुनिया मे शहाबुद्दीन सिवान के बेताज बादशाह रहे जो अपनी अदालत चलाया करते थे। उन्होंने सिवान मे डॉक्टरों की फीस 50 रुपये तय कर दी थी।

Mohammad Shahabuddin
सन् 1986 मे 19 साल की उम्र मे शहाबुद्दीन पर पहला मुक़दमा दर्ज हुआ था। इसके बाद गुनाह के तमाम आरोप शहाबुद्दीन के दामन पर कभी न मिटने वाले दाग की तरह लगते रहे… साल था 1990 इसी दौर में बिहार की राजनीति भी नई करवट ले रही थी और राजनीति के बदलते इस परिवेश के केंद्र में थे लालू प्रसाद यादव। शहाबुद्दीन सियासत में भाग्य आजमाने को बेताब था, जेल मे रहते हुए शहाबुद्दीन ने नामांकन किया और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीतकर विधायक बना शहाबुद्दीन लगातार 2 बार बिहार विधानसभा का सदस्य रहा। ये वही दौर था जब शहाबुद्दीन धीरे-धीरे साहब बनने लगा था, साल 1996 में लोकसभा का चुनाव हुआ और राजद (RJD) ने शहाबुद्दीन को सीवान से टिकट दे दिया जिसके बाद वो जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंच गए थे। सिवान के जेपी चौक पर जेएनयू (JNU) के छात्र संघ अध्यक्ष चंद्रशेखर की एक सभा के दौरान हत्या कर दी गई जिसका आरोप शहाबुद्दीन पर लगा। इसके बाद उसपर हत्या अपहरण, रंगदरी वसूलने जैसे तमाम संगीन आरोप लगते चले गए। साल 2001 में सिवान के एसपी के नेतृत्व में जब पुलिस की टीम ने शहाबुद्दीन को प्रतापपुर स्थित उनके घर गिरफ्तार करने पहुंची तो उनके लोगों और पुलिस वालों के बीच काफी देर तक गोलीबारी हुई। इस घटना क्रम के पूर्व शहाबुद्दीन एक स्थानीय पुलिस अफसर को पीट चुके थे। इस घटना मे दो पुलिसकर्मी समेत 10 लोग मारे गए थे और छापेमारी के दौरान उनके घर से AK-47 समेत अन्य हथियारों का बड़ा जखीरा बरामद हुआ था। जेल में रहने के दौरान ही उन्होंने 2004 में सांसद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की और समय-समय पर शहाबुद्दीन जमानत पर जेल से बाहर आता रहें है।
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तेजाब कांड बिहार
बात करते है बिहार के सबसे चर्चित तेजाब कांड की, तेजाब कांड का बिहार की क्राइम हिस्ट्री में जिक्र होते ही निर्मम घटना की कहानी मानो आँख के सामने आ जाती हो।

अगस्त 2004 को सिवान मे चंदा बाबू के बेटे को तेजाब से नहलाकर शव के टुकड़े कर दिए गए इस घटना ने पूरे बिहार को झकझोर कर रख दिया था। इस मामले का आरोप भी शहाबुद्दीन पर लगा, शहाबुद्दीन के आपराधिक इतिहास में तमाम ऐसी घटनाएं थी जिनके बारे में सुनकर रोंगटे खडे हो जाये। आज के समय में जब हम एक स्वच्छ राजनीति की बात करें तो क्या यह नहीं हो सकता कि बिना अपराध के गठबंधन के राजनीति सुचिता वादी हो। तिहाड़ जेल में रहते समय ही शहाबुद्दीन को कोरोना संक्रमण की शिकायत के बाद दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां उन्होंने आखिरी सांस ली। इस तरह राजद (RJD) के बाहुबली सांसद मो. शहाबुद्दीन के राजनीतिक जीवन का 13 साल बाहर व 18 साल जेल में ही गुजर गया। शहाबुद्दीन की मौत के साथ ही न्यायालय से लगभग 35 से 40 मुकदमों का बोझ खत्म हो गया है। शहाबुद्दीन अपराध और राजनीति के नापाक गठबंधन से तैयार हुए शायद सबसे ताकतवर बाहुबली थे। कुछ लोग कहते हैं कि शहाबुद्दीन ने जैसी हिंसा फैलाई, वैसी इससे पहले किसी ने नहीं फैलाई थी।