जो रस बरस रहा बरसाने, सो रस तीन लोक में नाँय।बरसाना में लट्ठमार होली को देखने पहुँचे देश विदेश से श्रद्धालु 

सब जग होरी या ब्रज होरा कैसो है री फाग निगोरा ,मथुरा में यही होली का माहोल चारो तरफ दिखायी दे रहा है और यही कारन है कि बरसाने ओर नन्द गाँव से सुरु हुयी ब्रज की लट्ठ मार होली भगवान् कृष्ण के जनस्थान होते हुए आज पहुंच चुकी है भगवान कृष्ण के गोकुल में जहाँ प़र आज गोकुल में नन्द बाबा के महल से सुरु हुआ बाल स्वरुप भगवान का डोला .डोले में गोकुल वासी होली की मस्ती में मस्त होकर नाचते गाते चल रहे है .वाल स्वरुप कृष्ण का ये डोला

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लट्ठमार होली दुनियाभर में काफी प्रसिद्ध है। इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग बरसाना पहुंचते हैं। इस दिन महिलाएं पुरुषों के ऊपर लाठी चलाती है और वह खुद की रक्षा ढाल से करते हैं।भारत में विभिन्न तरह के तीज त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं में से एक त्योहार है होली का पर्व। देशभर में इस पर्व को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन कान्हा की नगरी में होली का पर्व अलग ही अंदाज में मनाया जाता है। फूलों की होली के साथ शुरू हुआ ये त्योहार रंगों की होली के साथ समाप्त होता है। राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माना जाने वाला ये पर्व दुनियाभर में मशहूर है। इसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग मथुरा, बरसाना पहुंचते हैं। होली के इस पर्व में एक दिन लट्ठमार होली खेलती है। इस दिन महिलाएं पुरुषों के ऊपर लाठी बरसाती है और खुशी से हर कोई रस्म को निभाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, लट्ठमार होली द्वापर युग से शुरू हुई थी। नंदगांव के कन्हैया अपने सखाओं के साथ राधा रानी के गांव बरसाना जाया करते हैं। वहीं पर राधा रानी और गोपियों श्री कृष्ण और उनके सखाओं की शरारतों से परेशान होकर उन्हें सबक सिखाने के लिए लाठियां बरसाती थी। ऐसे में कान्हा और उनके सखा खुद को बचाने के लिए ढाल का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे ही धीरे-धीरे इस परंपरा की शुरुआत हो गई है जिसे बरसाना में धूमधाम से मनाते हैं।

बता दें कि लट्ठमार होली बरसाना और नंदगांव के लोगों के बीच खेली जाती है। लट्ठमार होली के एक दिन पहले फाग निमंत्रण दिया था।

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