भारत का वह नायक जिसने चीन को रणभूमि में धुल चटाई और चीन के व्यापार पर कर लिया कब्ज़ा

आज इतिहास के उस नायक को हम याद करेंगे जिसने चीन को रणभूमि में धुल चटाई और चीन के व्यापार पर कब्ज़ा कर लिया। हिन्दुस्तान में मौर्या साम्राज्य के पतन के बाद आर्यावर्त कमजोर पड गया था और इसी समय मध्य ऐसिया में कुषाणों साम्राज्य का उदय हुआ।

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कुषाण साम्राज्य का प्रथम शाशक कुजुल कदफिसेस हुआ। उसके बाद वीम कदफिसेस फिर इस वंश के सबसे प्रतापी जंगबाज सम्राट का जन्म हुआ जिसकी तलवार ने मध्यएशिया से चीन तथा सारनाथ तक रेखा खेंच दी जिसको इतिहास में सम्राट कनिष्क के नाम से जाना गया। कुषाण एक विदेशी जाति थी, जो चीन के पश्चिमोत्तर प्रदेश में निवास करती थी. इस जाति का सम्बन्ध चीन की यू ची जाति की शाखा से था.हालाँकि बाद में ये पूरी तरह से आर्य बन गए और शैव तथा बौद्ध धर्म के अनुयायी बने। कुषाणवंशी राजाओं ने पहली बार भारत में सोने के सिक्कों का प्रचलन किया जिसमे शिव की आकृति अंकित थी। कनिष्क ने 78 ईश्वी सन में राज्यारोहण किया .और शक सम्बत की शुरुआत की। महान बौद्ध गुरु अश्वघोष कनिष्ठ के दरबारी थे जिन्होंने बुद्धचरित की रचना की। चरक संहिता के लेखक महान और्वेदाचार्य चरक भी कनिष्ठ के दरबार की शोभा थे। कनिष्क की राजधानी पुरुषपुर थी जिसे आज पेशावर कहा जाता है।प्राचीन ऐतिहासिक वंशवालिओं को जानने की प्रामाणिक पुस्तक कल्हड़ की राजतरंगिणी में लिखा है की कनिष्क का कश्मीर पर अधिकार था। कनिष्क ने काशी मथुरा अयोध्या आदि को भी अपने अधीन कर लिया था। प्राचीन भारत में कनिष्क के पूर्व इतना बड़ा साम्राज्य किसी का नहीं था। कनिष्क बौद्ध विद्वान अश्वघोष के सम्पर्क में आया, जिसके प्रभाव से उसने बौद्ध धर्म अपना लिया. कनिष्क के काल में कुंडल वन में आयोजित चतुर्थ बौद्ध संगीति में त्रिपिठ्कों पर टिकाएं लिखी गई इन्हें एक ग्रंथ महाविभाष में संकलित किया.

कनिष्क के समय में बौद्ध धर्म स्पष्ट दो सम्प्रदायों हीनयान व महायान में विभक्त हो गया था.शून्य वाद तथा सापेक्षवाद के प्रवर्तक एवं प्रकांड विद्वान नागार्जुन, पार्श्व तथा वसुमित्र भी कनिष्क के दरबारी थे।कनिष्क के काल में गांधार व मथुरा कला शैलियों का विकास हुआ..विम कैडफिसिस सोने के सिक्के चलाने वाला पहला भारतीय शासक था.जो कनिष्क का पिता था….. भारत में आने से पूर्व कुषाणों का शासन बैक्ट्रिया में था जो उत्तरी अफगानिस्तान व दक्षिणी उज्केबिक्स्तान व दक्षिणी तजाकिस्तान का क्षेत्र था….. कनिष्क से पहले के शासक शैव अनुयायी थे. कनिष्क भी शिव व कार्तिकेय की पूजा करता था. उसने मुल्तान में एक सूर्य मन्दिर भी बनवाया…कनिष्क ने .कश्मीर को अपने राज्य में मिलाकर कनिष्कपुर नामक नगर की स्थापना की उज्जैन के क्षत्रप को हराकर मालवा को जीता. कनिष्क ने चीन के साथ दो लड़ाई लड़ी. पहले युद्ध में हारकर दूसरे में विजय हासिल की. मध्य एशिया के कई प्रान्त काश्गर यारकंद और खेतान के क्षेत्रों पर भी कनिष्क ने अपना शासन स्थापित किया.,, चीनी साहित्य में कनिष्क और पार्थिया के राजा नान सी के युद्ध का वर्णन हैं. नान सी ने कनिष्क पर आक्रमण किया परन्तु उसे सफलता नहीं मिली हार का मुहं देखना पड़ा था.,,, पंजाब और मगध की विजयकेन साथ कनिष्क ने अयोध्या को भी जीता तिब्बती जनश्रुतियाँ इसका प्रमाण हैं। लगभग सम्पूर्ण उत्तर भारत में अपनी विजय पताका फहराने के पश्चात भी कनिष्क अपने राज्य विस्तार से संतुष्ट नहीं था, मध्य एशिया में चीनी साम्राज्य पान चाऊ के नेतृत्व में फ़ैल रहा था.

73-78 ई. में चीनी विस्तारवाद कैस्पियन सागर तक फ़ैल चूका था.कनिष्क ने अपने राजदूत को पान चाऊ के पास मैत्री सम्बन्ध के लिए भेजा साथ ही चीनी सम्राट की बेटी से विवाह करने की इच्छा भी जताई. इससे क्रुद्ध होकर पान चाऊ ने कनिष्क पर चढाई कर दी और कुषाणों को इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा.,,,पान चाऊ की मृत्यु के बाद कनिष्क ने अपना प्रतिशोध लेने के लिए चीनी सेना पर धावा बोला और मध्य एशिया के कई प्रान्त यारकंद, खोतान और काशगर को जीत लिया…

यूनानी और शक राजाओं को भी कनिष्क ने भारत से खदेड़ दिया तथा उज्जैन में शक क्षत्रपों को हराकर मालवा पर भी अधिकार कर लिया। पामीर के दर्रों से लेकर वारानशी तक तथा मध्य एसिया से चीन तक अपनी तलवार का लोहा मनवाने वाले शिवभक्त सम्राट कनिष्क ने दूसरी शदी के शुरुआत में अंतिम साँस ली जिसकी विजयगाथा आज भी इतिहास गर्व के साथ सुनाता है। कनिष्क के बाद भारत में गुप्त वंश का उदय हुआ जिसमे समुद्रगुप्त तथा विक्रमादित्य जैसे सम्राट हुए। इतिहासनामा में आज इतना ही,,, फिर मिलेंगे किसी और कहानी के साथ,,

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