योगी सरकार में UP के लाचार किसान की कहानी

भारत एक कृषि प्रधान देश है भारत की आत्मा गावों में बस्ती है .कृषि भारतीयअर्थव्यवस्था की धुरी है। जय जवान जय किसान कितने अच्छे लगते है ये नारे लेकिन जब देश से किसानो की आत्महत्या की खबरे आती है तो जिम्मेदार मुँह छिपा लेते हैं।

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मोदी जी अपने प्रथम कार्यकाल में जब संसद कैंटीन में खाना खाया तो तो लिखा अन्नदाता सुखी भव.,, लेकिन क्या है up के किसानो की असल कहानी ,,,,, वो सुखी हैं की आखे है पानी पानी। आवारा घुमन्तु पशुओं ने किसानो के दिन रात की मेहनत की जमकर परीक्षा ली है। या यूँ कहिये कि किसानो ने बेबस होकर घुटने टेक दिए हैं। उत्तर प्रदेश में खाद्दान्न उत्पादन में गिरावट इसका जीता जागता प्रमाण है। पशुओं के आतंक से किसान चना मटर आलू सब्जी सहित गेंहू धान जैसी महत्वपूर्ण फसलों की खेती से तौबा कर रहें हैं। देश अभी खाद्दान्न में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है। उक्रैन रूस युद्ध के कारन गेहूं का पर्याप्त आयात न होने कारन इसकी कीमत बढ़ गयी और गरीब की थाली से रोटी गायब हो रही है।2017 में गोवंश की तस्करी को रोकने के उद्देश्य से योगी सरकार ने अवैध स्लाटर हाऊसेस यानि बूचड़खानों को बंद कर दिया। तथा पशुओं के आश्रयस्थलों का निर्माण रखरखाव व संरक्षण कि दिशा में कदम उठाये जो जमीन पर मुक्कम्मल नहीं हुए।

अधिकारीयों की लापरवाही ,बिचौलियों व ठेकेदारों की बंदरबाट ने हिन्दू धर्म में आस्था से जुडी गौमाता की भी दलाली शुरू कर दी।हालाँकि योगी सरकार ने गोवंशों को ध्यान में रखते हुए ट्रिपल पी मॉडल से अर्थव्यवस्था को मजबूत करने काी योजना चलायी जिसमे नेचुरल फार्मिंग ,गोबर पेंट ,cng तथा cbg अदि के उत्पादन का लक्ष रखा गया। अब ये योजना कितनी कारगर हुई इसकी बात बाद में करेंगें। पुरे भारत में २० करोड़ से ज्यादा मवेशी हैं जिनमे सबसे ज्यादा up में हैं। पशुधन गणना 2019 के अनुसार पुरे देश में पशुधन संख्यां में तीन प्रतिशत की गिरावट हुई वंही up में 17 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। उत्तर प्रदेश में ११ लाख ९० हजार आवारा जानवर हैं। ६०० से अधिक गौशालाओं का निर्माण हुआ है जिसमे 9 लाख से ज्यादा गोवंश हैं। निराश्रित गोवंशों को पालने के लिए सरकार ने 900 रूपए की प्रोत्साहन राशि भी तय की है। सरकारी आंकड़ा कहता है की 56 हजार 853 लोगों ने १ लाख ३० हजार गोवंशों को गोंद लिया है। लेकिन इन सरकारी आंकड़ों को देखने के बाद अदम गोंडवी का वो मशहूर शेर याद आता है की,,,तुम्हारी फाइलों में गाओं का मौसम गुलाबी है ,,, मगर ये दावें झूठें है ये आंकड़ें किताबी हैं।

पिछले लोकसभा और विधानसभा के चुनाव मैनिफेस्टो में भाजपा लगातार घुमन्तु जानवरो से किसनो को मुक्ति का मुद्दा शामिल शामिल करती आ रही है पर हकीकत यही है कि किसान सरकार को कोस रहा है और अपनी हालत पर रो रहा है। पश्चिमी up में फसल बर्बादी से बौखलाए एक किसान ने एक भाजपा विधायक को थप्पड़ तक मार दिया था। वास्तव में किसानों का आक्रोश जायज है और इसका असर आने वाले इलेक्शन में अगर पड़े तो असमंभव नहीं। अगर सरकार इस मुद्दे पर संजीदा है तो धरातल पर इसकी ताबीर क्यों नहीं ?गौशालाओं में गोवंशों को मरने के लिए छोड़ दिया गया है इसमें इन बेजुबानों की क्या गलती है ?समय रहते अगर साकार इस पर सख्त न हुई तो इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे।

वातानुकूलित भवनों में दावत उड़ने वाले जिम्मेदार लोगों को समझना होगा की जो अन्न वे मजे से खा रहे हैं वह किसानो की बेबस आंसुओं में सने हैं। कर्ज लेकर अच्छी फसल के इंतजार में लाचार किसान अपनी सूनी आँखों से खून पसीने से तैयार फसल को बर्वाद होते देख रहा है….. कहाँ है सरकार और कहाँ हैं उनके नौकरशाह और कहाँ है अच्छे दिन। किसान सरकार से सवाल कर रहा है इसका जबाब चाहिए ,,,,

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