अखिलेश यादव दलितों के नए मसीहा बनने की भरसक कोशिश कर रहे हैं.कोशिश तो उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी की थी…जब अपनी उस बुआ के साथ गठबंधन किया था…जिसके चीरहरण की कोशिश 1995 में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने की थी…
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मायावती उस अपमान को भूल गई…लेकिन दलित नहीं भूले और उन्होंने अखिलेश की जगह भाजपा का साथ दिया… जिसके कारण गठबंधन का यह फार्मूला फेल हो गया… अब नए सिरे से दलितों के प्रति अखिलेश का प्रेम जागा है… प्रेम इस हद तक है कि उनके मंच से लगते राम विरोधी नारे भी उन्हें स्वीकार हैं… इतना ही नहीं अखिलेश ने रायबरेली में कांशी राम की प्रतिमा का अनावरण भी किया है…और दलितों के बीच अपनी पकड़ बनाने के लिए अवधेश प्रसाद इंद्रजीत सरोज आर के चौधरी स्वामी प्रसाद मौर्य लाल जी वर्मा जैसे नेताओं को आगे भी किया है…मायावती अखिलेश के दलित अभियान से खुश नहीं हैं….उन्होंने अखिलेश के दलित प्रेम को दिखावा बताया है…क्या अखिलेश दलितों के मायावी मसीहा के बरअक्स खड़े हो पाएंगे…और उनके इस कद को चंद्रशेखर रावण जैसे नेता कितना बर्दाश्त कर पाएंगे फिलहाल ये देखने वाली बात होगी लेकिन एक बात साफ कि अखिलेश यादव कांशीराम की विरासत बसपा से छीनने की कोशिश में जुट गए है आइये आपको पूरी खबर विस्तार से बताते है

समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले यादव-दलित राजनीति को साधने की रणनीति बना रही है। यादवपरस्ती के आरोपों के बीच पिछड़े वोटरों को भाजपा के हाथों खो देने वाले अखिलेश यादव अब बसपा के दलित वोटरों पर डोरे डालकर उन्हें अपने पाले में खींचने की कोशिश में जुट गये हैं। बाबा साहब भीमराव अंबेडकर तथा कांशीराम के नाम के सहारे समाजवादी पार्टी 2024 की नांव पार लगाने की तैयारी में है।अब यह रणनीति कितनी कारगर होगी यह तो समय बतायेगा, लेकिन सियासत में जनता का भरोसा जीतना सबसे मुश्किल काम है। फिलहाल रामचरित मानस की एक चौपाई के बहाने खुद को शूद्र घोषित करने वाले समाजवादी पार्टी के नेता अब दलित वोटरों को अपने पाले में करने के मिशन पर हैं। रायबरेली में अखिलेश यादव ने एक कॉलेज में बसपा के संस्थापक कांशीराम की मूर्ति का अनावरण करके इसकी शुरुआत कर दी है। मूर्ति अनावरण के समय अखिलेश ने सपा की दलित हितैषी छवि का जिक्र करते हुए याद दिलाया कि सपा की मदद से ही कांशीराम पहली बार इटावा से सांसद हुए थे। कांशीराम की विरासत बसपा से छीनने की इस कोशिश में सपा ने बाबा साहब वाहिनी नाम से एक सहायक संगठन भी बनाया है, जो उसके दलित जोड़ो अभियान को आगे बढ़ायेगा।अखिलेश के लोहियावादी एवं अंबेडकरवादी जोड़ो अभियान को सपा में शामिल हुए पुराने बसपाई नेता धार देंगे।

दलित मतदाता अगर समाजवादी पार्टी की तरफ आया तो बसपा का बचा खुचा जनाधार भी समाप्त हो जायेगा।खैर, सपा और बसपा की वोट बैंक की राजनीति से इतर अगर जमीनी हकीकत देखें तो अखिलेश यादव का यह प्रयास इतना आसान नहीं होने वाला है। दोनों दलों के वोटरों के बीच 1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद से आई दूरी अब तक सामाजिक स्तर पर पटी नहीं है। सपा-बसपा गठबंधन टूटने के बाद सपा समर्थक यादवों ने जिस तरीके से इसका बदला उत्तर प्रदेश के दलित वर्ग के लोगों से लिया था, उसकी टीस अब भी दलित, खासकर जाटव वोटरों में मौजूद है ण्गेस्ट हाउस कांड के बाद यादव एवं दलितों में बनी दूरी अब भी जस की तस है। इसका सबसे बड़ा और तथ्यात्मक उदाहरण कन्नौज, बदायूं एवं मैनपुरी लोकसभा चुनाव 2019 के आंकड़े हैं। यूपी में भाजपा को धूल चटाने के लिए अखिलेश यादव ने मायावती से गठबंधन किया था। तब इस गठबंधन को राज्य का सबसे मजबूत गठबंधन माना गया था, तथा कयास लगाया जा रहा था कि भाजपा 73 सीटों से घटकर आधे से कम पर आ जायेगी। केन्द्र में मोदी की सरकार भी नहीं बन पायेगी। जब नतीजे आये तो सारे सियासी कयास धरे के धरे रह गये। यह गठबंधन एक दूसरे को फायदा पहुंचाने की बजाय भाजपा के लिए ज्यादा सुविधाजनक साबित हुआ। सपा ने तो अपना वोट बसपा की तरफ ट्रांसफर कराया, लेकिन बसपा का वोट सपा की बजाय भाजपा को मिला।
यूपी में बसपा ऐसी पार्टी मानी जाती रही है, जिसके पास अपने वोट को ट्रांसफर कराने की ताकत है, लेकिन 2019 में बसपा की यह ताकत नहीं दिखी। दरअसल, सपा भले ही दलित वोटरों को साधने के लिए अंबेडकर और कांशीराम का सहारा ले रही हो, लेकिन यूपी में यादवों द्वारा दलित वोटरों का भरोसा जीतना इतना आसान नहीं है।सबसे बड़ा सवाल तो ये भी है कि क्या सपा की ‘यादवपरस्त’ राजनीति पर भरोसा करेगा दलित?
क्या अखिलेश यादव एक असंभव कार्य को संभव करने के अभियान पर !
क्या अखिलेश यूपी के दलित मतदाताओं को यादव नेतृत्व प्रदान करना चाहते हैं।
क्या उत्तर प्रदेश में यह संभव होगा?
क्या राम और रामायण का विरोध करके दलितों पिछड़ो और शोषितों को जोड़ने का प्रयास सपा का सफल होगा ?
और सबसे आखिरी सवाल क्या कांशीराम की विरासत बसपा से छीनने की कोशिश में है सपा! इन सब प्रशनो के जवाब बहुत जल्द आपके सामने मिलेगा