स्वतंत्रता की धधकती आग में शहादत का गवाह बना सेनापुर गांव

मेरठ में 1857 में इस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ चिनगारी भड़की तो उसकी आंच जौैनपुर के डोभी में भी महसूस की गई। क्रांति की रोटी यहां पहुंची हो या नहीं लेकिन यहां के रणबांकुरों ने अंग्रेजों से जबरदस्त लोहा लिया।

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लंबी लड़ाई के बाद सीधे मुकाबले में सफल नहीं होने पर कंपनी के अफसरों ने धोखे से समझौते के लिए सेनपुरा बुलाया बुलाया और 22 रणबांकुरों को फांसी दे दी। उसके बाद उनके सहयोगियों का दमन किया गया।जौनपुर मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर पूरब केराकत तहसील का सेनापुर गांव हैं। जहां के शहीद बाग में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 22 रणबांकुरों को फांसी दी गई थी। मेरठ में भड़की चिंगारी पूर्वी उत्तर प्रदेश में आग बनकर धधकने लगी थी। बनारस में जून माह में कंपनी के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ तो उसकी खबर जौनपुर पहुंची तो डोभी और चौदह कोस में फैले कटेहर क्षेत्र के रघुवंशियों ने अपनी सेना गठित कर ली। जौनपुर और वाराणसी की सीमा पर मौजूद दानगंज में दानू अहीर अपने सात पुत्रों के साथ सेनानी बनकर अंग्रेजों पर कहर बनकर टूट पड़े ,डोभी के रघुवंशियों ने संगठित होकर सेना का रूप धारण कर लिया। उन्होेंने अंग्रेजों को कई बार खदेड़कर जौनपुर की सीमा से बाहर कर दिया।

अंग्रेजी सेना को वाराणसी के बावनबीघा तक खदेड़ दिया और वाराणसी-आजमगढ़ मार्ग पर कब्जा कर लिया। क्रांतिकारियों ने नील गोदाम पर भी कब्जा कर लिया था। सितंबर माह में गोरखा सेना आई लेकिन उसकी भी एक न चली। बाद में अंग्रेजों ने समझौते के बहाने सेनापुर में पंचायत बुलाई। वहां अंग्रेजों ने डोभी के 22 क्रांतिवीरों को गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी दे दी। फांसी पर लटकाने के बाद अंग्रेजों ने उन पर गोलियां चलाईं। 22 शहीदों में सात लोग कौन थे, इसका पता नहीं चल पाया। वर्ष 2021 में जौनपुर जिलाधिकारी दिनेश कुमार सिंह के नेतृत्व में इस शहीद स्मारक का चौमुखी विकास कराया गया।

report by ayush singh

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