उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के कैसर बाग कोर्ट परिसर में पुलिस कस्टडी के दौरान कुछ अज्ञात हमलावरों ने एक व्यक्ति की कर दी । जिस व्यक्ति की हत्या की गयी वो कोई आम इंसान नहीं था। वो व्यक्ति जीता जागता खौफ का दूसरा नाम था।

इस अपराधी का पूरा नाम संजीव माहेश्वरी उर्फ़ जीवा ,काम ,रंगदारी अपहरण ,लूट ,हत्या। संजीव उर्फ़ जीवा मूलरूप से शामली जनपद के गांव आदमपुर का रहने वाला था। संजीव जीवा के पिता ओमप्रकाश महेश्वरी था। गांव छोड़कर वर्ष 1986 में मुज़फ्फरनगर आ बसे और शहर कोतवाली क्षेत्र के प्रेमपुरी में पशु दूध डेयरी का व्यवसाय शुरू कर दिया । सजीव जीवा भी इंटर की पढाई पूरी कर अपने पिता के साथ डेयरी पर पिता का हाथ बटाने लगा।कहा जाता है संजीव उर्फ़ जीवा पढ़ लिखकर डॉक्टर बनाना चाहता था। लेकिन पारिवारिक स्थिति ऐसी न थी कि उसके पिता उसको डॉक्टर बना सके.इसलिए इंटर के पढ़ाई के बाद जीवा एक झोला छाप डॉक्टर यहाँ नौकरी करने लगा। जीवा को वहा ,नौकरी के लिए जो काम मिला था ,वो था कम्पाउंडर का काम ,संजीव अब रोजाना सुबह 10 बजे शंकर दवाखाना पहुंचता, दवाएं पीसता और दवाओं की पुड़िया बनाकर मरीजों को देना उसकी रोजमर्रा की जिंदगी का एक हिस्सा बन गया था। लेकिन एक दिन ऐसा आया जिसने संजीव माहेश्वरी की पूरी जिन्दगी बदल दी, और वो अब बन गया संजीव उर्फ जीवा उर्फ डॉक्टर। जिस जगह जीवा नौकरी करता था उस डॉक्टर का पैसा एक जगह फसा हुवा था तो डॉक्टर ने सोचा कि जीवा को भेजकर देखा जाये हो सकता है पैसा मिल जाये। हुवा भी वही वो कंपाउंडर गया तो था अपने मालिक के लिए पैसों की वसूली करने ,लेकिन जब वह वापस आया जो वह अपने नसीब की नई इबारत लिख चुका था।

इस एक घटना ने संजीव का हौसला बढ़ा दिया और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक नए अपराधी का जन्म हुआ।जीवा अब जरायम की दुनियां का बेताज बादशाह बनने का सपना देखने लगा। संजीव ने अपराध की जगत में पहली दस्तक दी और अपने ही डॉक्टर मालिक को अगवा कर लिया और फिरौती के लिए बड़ी रकम ली उसके बाद उसे छोड़ा। इस घटना के बाद संजीव ने बारीकी से अपहरण करना व फिरौती माँगना सीख लिया था। जीवा अब रुकने वाला नहीं था क्योंकि उसके मुँह में खून लग चूका था। संजीव में 1992 में बड़ा हाथ मारते हुए कोलकाता के एक बड़े व्यापारी के बेटे का अपहरण कर लिया और ऐसी फिरौती मांगी की न केवल यूपी और कोलकता बल्कि पूरे देश में सनसनी मच गयी.कहा जाता है कि उस व्यापारी के अपहरण में जीवा ने 2 करोड़ की फिरौती मांगी थी। जिसके बाद बाद जीवा के नाम का सिक्का पूरे प्रदेश में चलने लगा

जीवा की कहानी जब मुजफ्फरनगर के हाईप्रोफाइल क्रिमिनल रवि प्रकाश तक पहुंची तो उसने संजीव को अपना शागिर्द बना लिया। संजीव को पहली बार शातिर डॉन का साथ मिला जिसके बाद उसका ग्राफ तेजी से बढ़ने लगा। रवि के संपर्क में आने के बाद जीवा जुर्म की दुनिया के नए नए हथकंडे सीखता गया। अपराध के दांव पेंच सिखते जा रहे संजीव ने हरिद्वार के नाजिम गैंग का साथ पकड़ा। उसके बाद वो सतेंद्र बरनाला नाम के एक गैंगस्टर के लिए काम करने लगा।अब संजीव दूसरों के लिए काम नहीं करना चाहता था वह बड़ी छलांग लगाने के मूड में था, इसलिए उसने अब अपना गैंग बना लिया। रवि प्रकाश, जितेंद्र उर्फ भूरी और और रमेश ठाकुर जैसे खूंखार अपराधी उसके गैंग में जुड़ गए।

90 के दशक में पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिमी यूपी तक मुख्तार अंसारी, ब्रजेश सिंह, मुन्ना बजरंगी, बदन सिंघ बद्दो और भोला जाट जैसे माफियायों का दबदबा हुवा करता था स समय संजीव जीवा अपने छोटे से गैंग को चलाकर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचना चाह रहा था। अब जीवा के मन में पूरे यूपी में अपना परचम लहराने का था। जीवा ने इसके लिए ऐसा काम कर दिया जो बड़े-बड़े अपराधी सोच भी नहीं सकते थे, उसने वह कर दिया जिससे पूरे उत्तर प्रदेश में भूचाल आ गया। संजीव जीवा ने उस उस बीजेपी नेता की हत्या कर दी जिसने कभी पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की जान बचाई थी। तारीख 10 फरवरी 1997, बीजेपी के उभरते हुए नेता और विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी फर्रुखाबाद के शहर कोतवाली स्थित अपने घर से कुछ दूरी पर एक तिलक समारोह में गए थे।

लौटते समय ब्रह्मदत्त जैसे ही अपनी गाड़ी में बैठने लगे तभी तभी संजीव ने अपने साथियों रमेश ठाकुर और बलविंदर सिंह के साथ मिलकर उन पर अंधाधुंध फायरिंग कर उनकी हत्या कर दी। इस हमले में ब्रह्मदत्त द्विवेदी के गनर बीके तिवारी की मौत हो गई। हत्याकांड में सपा विधायक विजय सिंह का नाम सामने आया। जिन ब्रह्मदत्त की हत्या संजीव जीवा ने की थी उनके सियासी कद का अंदाजा इस बात से लगायी जा सकती है कि उनके अंतिम यात्रा में अटल बिहारी बाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज नेता शामिल हुए थे।माना जाता है गेस्ट हाउस कांड में मायावती की इज्जत और जान दोनों ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने ही बचायी थी जिसके बाद मायावती ने उनको अपना भाई मानने लगी थी। इस हत्या के हत्या के बाद जीवा की डिमांड बढ़ गयी। जीवा अब मुख़्तार अंसारी मुन्ना बजरंगी करीबी बन गया। जीवा मुख्तार अंसारी के सबसे भरोसेमंद शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी के साथ जुड़ गया और उसका अपराध जगत का बेताज बादशाह बनने का सपना पूरा होने के करीब पहुंच गय.संजीव मुन्ना के इशारे पर एक के बाद एक हत्या की वारदातों को अंजाम देने लगा। संजीव अब माफिया मुख्तार अंसारी के खास शूटर्स में शुमार हो चुका था।

उत्तर प्रदेश में एक ऐसी घटना को अंजाम दिया गया जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। समय था 25 नवंबर 2005 का गाजीपुर के मोहम्मदाबाद इलाके में बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन कर वापस लौट रहे थे तभी सामने से एक गाड़ी उनकी गाड़ी के सामने रुकती है। गाड़ी से 8 लोग नीचे उतरते हैं और एके-47 से गोलियों की बौछार कर देते हैं। विधायक कृष्णानंद राय के शरीर का शायद ही ऐसा अंग रहा हो जहां गोलियां न लगी हों। कहा जाता है कि कृष्णानंद राय को मारने के लिए 400 राउंड गोलियां चलाई गई थीं। इस शूटआउट में कृष्णानंद समेत 7 लोगो की मौत हो गयी थी। दिल दहला देने वाली इस हत्या कांड में हत्याकांड में मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी और संजीव जीवा का नाम सामने आया।

इस घटना के बाद संजीव जीवा ने कई हत्याओं को अंजाम दिया और जरायम की दुनिया में राज करने लगा। इधर कृष्णा नन्द हत्याकांड के बाद पुलिस जीवा को उठाकर जेल में बंद कर दिया। पुलिस ने सोचा कि जीवा का खौफ धीरे धीरे ख़त्म हो जायेगी लेकिन जीवा ने जेल को ही अपना घर बना लिया और वहीं दरबार लगाने लगा। जेल से ही उसके फरमान जारी होते और किसी को भी मौत की नींद सुला देते थे। 2017 में भी उसके ऊपर एक व्यापारी की हत्या करवाने का आरोप लगा उधर मुन्ना बजरंगी की जेल में हत्या के बाद जीवा डरने लगा था कि कही उसकी हत्या न हो जाये। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा पर 26 आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए थे ।

इनमें से 17 मामलों में संजीव बरी हो चुका था। बीते बुधवार को जीवा का कैसर बाग कोर्ट में पेशी थी तभी अचानक जीवा पर चार अज्ञात लोगों ने हमला बोल दिया और गोली मार कर हत्या कर दी। हमलावर वकील के भेष में आये थे जिन्होंने ने घटना को अंजाम दिया