झारखंड में आदिवासियों के सबसे बड़े त्योहार ‘सरहुल’ को लेकर राज्यभर में उल्लास देखने को मिला। इस मौके पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सरना स्थल में पूरे विधि विधान से पूजा अचना की। उन्होंने कहा कि जल -जंगल -जमीन है, तभी मनुष्य का वजूद है। अगर सभी प्रकृति को संरक्षित नहीं कर पाए तो आने वाली पीढ़ी को कई बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में प्रकृति के साथ छेड़छाड़ को रोकने के लिए सभी को आगे आना होगा।
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आदिवासी धर्मगुरु जगलाल पाहन ने बताया कि तीन दिवसीय सरहुल पर्व के पहले दिन जनजातीय समाज के लोग उपवास रखते हैं। सुबह खेत और जलाशयों में जाकर केकड़ा और मछली पकड़ते हैं। पूजा के बाद रसोई में उसे सुरक्षित रख देते हैं। ऐसी मान्यता है कि फसल बोने के समय केकड़ा को गोबर पानी से धोया जाता है। इसके बाद उसी गोबर पानी से फसलों के बीज को भींगा कर खेतों में डाल दिया जाता है। पूर्वजों में ऐसी मान्यता है कि केकड़ा के 8 से 10 पैरों की तरह फसल में ही ढेर सारी जड़े निकलेंगी और बालियां भी खूब होगी। अच्छी फसल होगी।