देश में सियासत का केंद्र बना रामलीला मैदान ,केजरीवाल ने भरी मोदी सरकार के खिलाफ हुँकार

काफी दिनों बाद दिल्ली का रामलीला मैदान एक बार फिर देश में सियासत का केंद्र बना है। लंबे समय के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक बार फिर दिल्ली के रामलीला मैदान पर पहुंचे थे।

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जहा केजरीवाल ने रैली को संबोधित करते हुए कहा, कि 12 साल पहले हम इसी मैदान पर हम लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ इकठ्ठा हुए थे. आज उसी मैदान पर 12 साल बाद एक बार फिर एक अहंकारी तानाशाह को हटाने के लिए हम इकठ्ठा हुए हैं.हम आपको बता दे कि आम आदमी पार्टी ने ये रैली केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ बुलाई थी . आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया है कि केंद्र की मोदी सरकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार को काम नहीं करने देना चाहती है. रैली में अरविंद केजरीवाल के साथ ही पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ ही पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल भी शामिल थे।

केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल विपक्ष को भी साथ लाने की पूरी जद्दोजहद कर रहे है गौरतलब है कि इससे पहले आप नेता केजरीवाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार के सीएम नीतीश कुमार, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, तमिलाडु के सीएम एमके स्टालिन, तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के चीफ शरद पवार, महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सहित कई नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं ,और समर्थन हासिल किया है। आइये हम आपको बताते है कि दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार में किस बात को लेकर टकराव है

दिल्ली में विधानसभा और सरकार का कामकाज तय करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 है। केंद्र सरकार ने 2021 में इसमें बदलाव कर दिया। कहा गया- विधानसभा के बनाए किसी भी कानून में सरकार का आखिरी फैसला उपराज्यपाल होगा। यानिकि दिल्ली सरकार को किसी भी फैसले में LG की राय जरूर लेनी पड़ेगी

दूसरा मामला है दिल्ली में जॉइंट सेक्रेट्री और इस रैंक से ऊपर के अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग के अधिकारों के मुद्दे पर सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव था। दिल्ली सरकार उपराज्यपाल का दखल नहीं चाहती थी। इन दोनों मामलों को लेकर आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची।

जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि दिल्ली में सरकारी अफसरों पर चुनी हुई सरकार का ही कंट्रोल रहेगा। 5 जजों की संविधान पीठ ने एक राय से कहा- पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोड़कर उप-राज्यपाल बाकी सभी मामलों में दिल्ली सरकार की सलाह और सहयोग से ही काम करेंगे।लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया और अध्यादेश ले आयी जिसने दिल्ली सरकार के पावर को काम कर दिया है। अब आप सोच रहें होंगे कि केंद्र सरकार के उस अध्यादेश में ऐसे क्या जिससे केजरीवाल घूम घूमकर समर्थन जुटा रहें है। तो आइये हम आपको सरल शब्दो में समझाते हैं। सरल शब्दों में कहें तो इस अध्यादेश के तहत अधिकारियों की ट्रांसफ़र और पोस्टिंग से जुड़ा आख़िरी फैसला लेने का हक़ उपराज्यपाल को वापस दे दिया गया है.यानिकि दिल्ली के मुख्यमंत्री,दिल्ली के मुख्य सचिव ,दिल्ली के गृह प्रधान सचिव ए ग्रेड के अधिकारियों की ट्रांसफ़र और पोस्टिंग से जुड़ा फैसला ले तो सकते है लेकिन आखिरी मुहर यानिकि आख़िरी फैसला उपराज्यपाल ही लेंगे तो समझने वाली बात ये है कि कुल मिलकर उपराज्यपाल चाहेंगे तो किसी अधिकारी की ट्रांसफर पोस्टिंग होगी और नहीं चाहेंगे तो नहीं होगी।

अब ये भी आप को जानना बहुत जरुरी है कि अध्यादेश लाने के पीछे केंद्र सरकार का तर्क क्या है .केंद्र सरकार ने कहा है कि दिल्ली देश की राजधानी है. ‘पूरे देश का इस पर हक़ है’ और पिछले कुछ समय से अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की ‘प्रशासनिक गरिमा को नुकसान’ पहुंचाया है. दिल्ली में ”कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थान और अथॉरिटी जैसे राष्ट्रपति भवन, संसद, सुप्रीम कोर्ट है . कई संवैधानिक पदाधिकारी जैसे- सभी देशों के राजनयिक दिल्ली में रहते हैं और अगर कोई भी प्रशासनिक भूल होती है तो इससे पूरी दुनिया में देश की छवि धूमिल होगी.”केंद्र सरकार का कहना है कि राजधानी में लिया गया कोई भी फैसला या आयोजन न केवल यहां के स्थानीय लोगों, बल्कि देश के बाकी नागरिकों को भी प्रभावित करता है.इस लिए ये अध्यादेश लाना जरुरी है वहीं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का कहना है कि ये केंद्र सरकार की मनमानी है जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं मानती। हम इस अध्यादेश को किसी भी हालत में कानून बनने से रोकेंगे। अब देखने वाली बात ये होगी कि क्या अरविन्द केजरीवाल राज्यसभा में केंद्र सरकार के अध्यादेश को कानून बनने से रोक पायेंगे और क्या केजरीवाल विपक्षी नेतावों के साथ लोकसभा चुनाव में मोदी के विजय रथ को रोक पायेंगे

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