आज हम अगर आज़ाद हवा में सांसे ले पा रहे हैं तो इसके पीछे अमर बलिदानियों का संघर्ष है। इस संघर्ष की आधार शिला रखी गई 1857 में जिसके प्रमुख चेहरों में से एक नाम था मंगल पांडेय (Mangal Pandey) का, मंगल ने फिरंगियों के विरुद्ध बगावत का बिगुल फूंका था। उत्तर प्रदेश के बलिया में जन्मे मंगल पांडेय (Mangal Pandey) ने अपने पराक्रम से ये साबित किया कि अगर हमारे इरादे मजबूत हों तो कोई कार्य कठिन नहीं। 22 वर्ष की उम्र में मंगल का ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना मे चयन हो गया, वह बंगाल नेटिव की 34वीं बटालियन में शामिल हुए थे।

मंगल पांडे (Mangal Pandey) द्वारा विरोध
ईस्ट इंडिया कंपनी ने सिपाहियों को अपनी नई इंसास (INSAS) राइफल जिसे “इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम” भी कहा जाता है; के कारतूस देने का आदेश दिया, जो गाय और सुअर की चर्बी से बनाए गए थे। मंगल पांडेय(Mangal Pandey) ने इस आदेश का विरोध किया और खड़े हो गए ब्रिटिश अधिकारियों के तानाशाही फरमान के खिलाफ। उनका साहस भारतीय स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई में मजबूत और कभी न डिगने वाला था।मंगल पांडे का नाम 1857 की क्रांति की उन अग्रदूतों में लिखित है जिन्होंने अपनी जान की आहुति देकर फिरंगियों के खिलाफ बगावत की चिंगारी को हवा दी उनके इस विरोध के बाद ब्रिटिश हुकूमत की चूले हिला दी मंगल पांडे ने ही सबसे पहले ‘मारो फिरंगी को’ नारा दिया था। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया 8 अप्रैल 1957 को स्वाधीनता की लड़ाई के उस नायक को फांसी दे दी गई। जिसके साथ ही बुझ गया वो दीपक जो गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए अंधकारयुक्त समाज में अपनी लौ से प्रकाश करने निकला था।
मंगल पांडेय (Mangal Pandey) पर प्रसिद्ध नारायण सिंह की कविता
मशहूर कवि प्रसिद्ध नारायण सिंह ने कभी भोजपुरी कविता में मंगल पांडेय के शौर्य और पराक्रम पर लिखा,
“मंगल मस्ती में चूर चलल, पहिला बागी मसहूर चलल
गोरन का पलटनि का आगे, बलिया के बाँका शूर
गोली के तुरत निसान भइल, जननी के भेंट परान भइल
आजादी का बलिवेदी पर, ‘मंगल पांडे‘ बलिदान भइल”