त्रेता युग के इस मंदिर में होती है हर मन्नत पूरी

अलीगंज स्थित पुराने हनुमान मंदिर की मान्यता है यह त्रेता युग से संबंधित है। यहाँ पर वनवास जाने से पहले सीता माता ने विश्राम किया था और मंदिर के बाहर हनुमान जी और लक्ष्मण जी पहरा दे रहे थे , लक्ष्मण जी टीला स्थित महल में चले गए थे, तभी से यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है।लेकिन बाद में इस्लामिक काल में हनुमान बाड़ी का नाम बदल कर इस्लाम बाड़ी कर दिया गया था…

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मंदिर की स्थापना
ऐसा कहा जाता है कि बेगम के सपने में बजरंग बली आए थे व सपने में इस बाग में अपनी मूर्ति होने की बात कही थी, और जब बेगम ने जमीन खोदवायी तो वहां मूर्ति मिली और फिर इस मूर्ति को सिंघासन पर बैठा कर हाथी पर सिंघासन को रख कर बड़े इमामबाड़ा की ओर ले गया गया लकिन हाथी रस्ते में ही एक जगह पर बैठ गयी और उठने का नाम नहीं ले रहा था और वही पर मंदिर की स्थापना हुई

मंदिर की बहुत सी मान्यताएं

आलिया बेगम को जब कोई संतान नहीं हो रही थी तो उन्होंने मन्नत मानी और उनकी मन्नत पूरी हो गयी , एक बार लखनऊ में भयानक प्लेग फैला था नवाब परिवार के सभी लोगो ने मन्नत मांगी की जब प्लेग खत्म हो जायेगा तो वह मंदिर में भंडारे का आयोजन करवाएंगे ….. तब से वह जेष्ठ माह में हर मंगलवार को भंडारे का आयोजन किया जाता हैं ,यह हनुमान मंदिर नवाबों द्वारा बनवाया गया है वहां स्थापित मूर्ति यहीं से ले जाई गई थी।

हनुमान मंदिर पर इस्लामिक चाँद
मंदिर के शिखर पर चांद आज भी देखा जा सकता है। इसकी तीन मान्यता हैं ऐसा मन जाता है कि लखनऊ शहर में महामारी फैल गई थी लोग परेशान हो कर मंदिर में आ गए थे जिसके बाद से भंडरा का आयोजन किया जाता है , दूसरे मत के अनुसार यहां पर इत्र का मारवाड़ी व्यापारी जटमल आया,अपना इत्र का व्यापार करने आया परंतु उसका इत्र नहीं बिका । जब यह बात नवाब को पत चला उन्होंने पूरा इत्र खरीद लिया। इससे खुश होकर जटमल ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और चांदी का छत्र भी चढ़ाया। कुछ लोगों का मानना है कि नवाब वाजिद अली शाह के परिवार की एक महिला सदस्य की तबीयत बहुत खराब हो गई थी और मंदिर में दुआ से वह ठीक हो गईं। वह दिन मंगलवार था और ज्येष्ठ का महीना भी था। उसी समय से शुरू हुआ बड़ा मंगल लगातार जारी है।

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