प्लास्टिक सर्जरी को आज कौन नहीं जानता लेकिन क्या आप जानते हैं की इसकी शुरुआत भारत में आज से लगभग तीन हजार साल पहले ही हो गयी थी….शल्य चिकित्सा के जनक महर्षि शुश्रुत ने अपने ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में इसका उल्लेख किया है।
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इस पुस्तक में ११०० रोगों के उपचार सम्वन्धी विधान दिए गए हैं। सैकड़ों औषधीय गुणों की व्याख्या सहित शल्य चिकित्सा को ३०० विधियां वर्णित हैं। 150 यंत्रों का वर्णन है तथा प्लास्टिक सरजरीका उल्लेख है। इसी लिए सुश्रुत को फादर ऑफ़ कॉस्मेटिक सर्जरी कहा जाता हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रथम प्लास्टिक सर्जरी कशी में आचार्य सुश्रुत ने किया था। हालांकि इसमें किसी प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं होता था। अकबर के समय हिमांचल प्रदेश का कांगड़ा क्षेत्र इसके लिए विख्यात था तथा कांगड़ा शब्द दो शब्दों से मिलकार बना है कान और गढ़ा यानि कांगड़ा अर्थान कान को गढ़ के ठीक किया जाता था.,,, आठवीं सदी में सुश्रुत संहिता का अनुवाद फ़ारसी भासा ने हुआ जिसका नाम था किताबे सुरसुद और यह किताब मध्य पूर्व में पढ़ी जाती थी और वंही से यह यूरोप होते हुए पश्चिमी देशों तक गयी।

ऋग्वेद के आत्रेय यानी एतरेय उपनिषद में माँ के पेट में बच्चे के निर्माण सम्बन्धी विवरण है जिसमे लिखा गया है की सबसे पहले बच्चे के मुख का निर्माण होता है फिर क्रमश नाक कान और ह्रदय यानि दिल की बनावट होती है। .आधुनिक सोनोग्राफी की तकनीक का इस्तेमाल कर देखा गया तो उपनिषद लिखी बात सत्य पायी गयी। भागवत में लिखा है की कान में उपलब्ध एक तत्व के कारण हमें दिशाओं का ज्ञान होता है।1935 में डॉ रोंस के द्वारा किये गए एक शोध में कहा गया की कान में मौजूद बेस्टिबेउलर ऑप्रेटस से हमें दिशाओं की पहचान होती है। हमारे वैज्ञानिक हमारे ऋषि मुनि थे जो आज के विज्ञान से बहुत आगे थे। आप को जान के हैरानी होगी की तमान बड़े आविष्कार १६वीं शताब्दी में हुए। जिसमे addison ,रुदरफोर्ड,किप्प्लिंग,न्यूटन,टेस्ला जैसे तमाम नाम शामिल थे। लेकिन ईसाई धर्म तो इसके सैकड़ों साल पहले ही आ गया था तो फिर इनके आविष्कार पहले क्यों नहीं हुए,तब इनकी काबिलियत कहाँ थी

दरअसल पंद्रहवी शताब्दी में ईस्ट इण्डिया कंपनी के आने के बाद हमारे तमाम ग्रंथों को विलायत भेजा गया जहां इन पर रिसर्च हुआ फिर ये अविष्कारों की श्रृंखला ने जन्म लिया। हमारा दुर्भाग्य की हम आग भी पश्चिम की तरफ देखते हैं लेकिन वे हमेशा कहते थे पूर्व की और देखो और यह उनका प्रसिद्ध नारा भी था। एक प्रमाण देता हूँ ,, अंग्रेजो और हैदरअली तथा उसके बेटे टीपू के बीच 1769 से 1799 के बीच ४ युद्ध लडे गए…. इसमें मैसूर के तीसरे युद्ध में अंग्रेजो की और से लड़ने वाले एक मराठा सैनिक कोसाजी को टीपू की सेना ने पकड़ लिया और उसकी नाक काटकर छोड़ दिया। अंग्रेजो ने इलाज करना चाहा तो कोसाजी ने मना करते हुए कहा की मेरा घरेलु वैद कुमार इसे ठीक कर देगा। अंग्रेजो को घोर आश्चर्य हुआ और वे पीछे पीछे चल पड़े। एक भट्ठे पर काम करने वाले ग्रामीण कुमार ने कोसजी की नाक की सर्जरी की और नाक कुछ दिन बाद पहले जैसी हो गयी।

थामस क्रूसो और जेम्स फ़िंडले ने इस घटना को मद्रास गजट में छपवाया तथा इसकी प्रति लंदन भेजी और यह घटना लन्दन की मशहूर पत्रिका जेंटलमान में 1794 में प्रकाशित हुई। इस दस्तावेज को ब्रिटिश संसद के दोनों सदनों हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स तथा हाउस ऑफ़ कॉमन्स के पटल पर रखा गया। अंततः डॉ JC कॉर्प ने इसी विधि का इस्तेमाल करते हुए 1816 में प्रथम प्लास्टिक सर्जरी करके दमिया में क्रांति पैदा की जो प्रथम विश्व युद्ध में घायल सैनिकों के इलाज में काम आयी। भारत को विश्व गुरु ऐसे ही नहीं कहा गया उसके पीछे ऐसी कई दास्ताने हैं जिन्हे हमसे छुपाया गया।