आरक्षण पर फिर टकराव ? | छत्तीसगढ़ के बात हमर साथ

छत्तीसगढ़ में आरक्षण का जिन्न एक बार फिर बोतल से निकलते दिखाई दे रहा है… निवर्तमान राज्यपाल अनुसुइया उइके ने इस मुद्दे को लटका दिया था और बढ़ा कर दिए गए आरक्षण को पारित नहीं किया था…

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अब नए राज्यपाल बिस्वा भूषण हरिचंदन के पास मंत्री कवासी लखमा और कांग्रेस विधायकों ने गुहार लगाई है… राज्यपाल से मिलने के बाद मंत्री कवासी लखमा ने कहा है कि राज्यपाल इस मुद्दे पर भाजपा के दबाव में हैं… उधर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह का कहना है कि राज्यपाल कानून सम्मत कदम उठाएंगे… राज्य सरकार के निर्देश पर नहीं बल्कि विधि विशेषज्ञों की राय पर काम करेंगे…

छत्तीसगढ़ में आरक्षण का मुद्दा लटकता क्यों जा रहा है और रमन सिंह केंद्र की भाषा क्यों बोल रहे हैं यह जानने की कोशिश करेंगे लेकिन उससे पहले सुनते हैं इस बारे में मंत्री कवासी लखमा और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह का क्या कहना

छत्तीसगढ़ में 2023 चुनावी साल भी है जिसके कारण राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही हैं. छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य है. इसके अलावा ओबीसी वर्ग की संख्या प्रदेश में दूसरे स्थान पर है. यही कारण है कि 90 विधानसभा वाले इस राज्य में आरक्षण सियासत का सबसे मजबूत मुद्दा है. इस मामले को भुनाने की कोशिश में कांग्रेस और भाजपा दोनों हैं

छत्तीसगढ़ में जबसे हाईकोर्ट ने 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए 2012 की मौजूदा भाजपा सरकार की पिटीशन खारिज की है तबसे यह मामला प्रदेश की सियासत के लिए चर्चा का विषय बन गया है. आरक्षण रद्द होने के बाद प्रदेश भर में आंदोलन, धरना देखे गए थे. आनन फानन में भूपेश बघेल की सरकार ने 1 और 2 दिसंबर 2022 को विधानसभा में विशेष सत्र बुलाकर 76 फीसदी आरक्षण विधेयक पारित कराकर राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए भेजा था. जिसके बाद से मामला अभी भी अटका हुआ है.

आरक्षण बिल पर नहीं हुए राज्यपाल के साइन

आरक्षण बिल पर ना तो अभी तक राज्यपाल के हस्ताक्षर हो सके हैं ना ही आरक्षण पर सियासत खत्म हो रही है. छत्तीसगढ़ की पूर्व राज्यपाल अनुसुइया उइके के समय से लंबित मामले में अब प्रदेश के नए राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन को निर्णय लेना है. 76 फीसदी आरक्षण लागू कराए जाने की उम्मीद से कांग्रेस के विधायकों ने मंत्री कवासी लखमा के नेतृत्व में राज्यपाल से मुलाकात की.

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