सावधान आंशू ,दर्द ,तबाही और हृदयविदारक मंजर….भारतीय रेल में आपका स्वागत है

ओडिशा ट्रेन हादसा अपने पीछे आंशू ,दर्द ,तबाही और हृदयविदारक मंजर छोड़ गया। मंजिल पर पहुंचने की चाहत लिए,आने वाले भयानक त्रासदी से अनजान मुसाफिर गुनगुनाते,जागते ऊंघते ,या फिर अपनों से मिलने की चाहत में खोये चले जा रहे थे। अचानक 2 जून की काली शाम को मौत ने अपने आगोश में ले लिया।

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बूढ़े बच्चे जवान महिलाएं समेत बहुतायत जिंदिगियों के सफर का दर्दनाक अंत हो गया। देखते ही देखते घटना स्थल मौत का मैदान बन गया/घटना की खबर मिलते ही देश में दर्द की लहर दौड़ गयी/कितनो के सुहाग उजड़ गए कितनो की गोंद सूनी हुई और कितने बेघर और बेसहारा हुए सरकार गिनती कर रही है क्यूंकि मरने वाले का अब कोई अस्तित्व नहीं वे तो अब गिनती के विषय हो गए.,,,.अब शुरू होगा नेताओं के शोक प्रकट करने का सिलसिला ,,,,,,सांत्वना राशि देने की कवायत और घटना स्थल का मुआयना करने का काम। राष्ट्रीय,,राजकीय शोक होगा midea पर चर्चा होगी क़ि जिम्मेदार कौन ?फिर ये घटना दस्ता वेजों में दम तोड़ देगी और दर्द तथा सिसकियों से सने कागज को धूल की चादर ढंक कर सिस्टम की जानलेवा लापरवाही को छुपा लेगी।

हिन्दुस्तान में ट्रेन दुर्घटना कोई पहली बार नहीं पूर्व में भी ऐसी कई भयानक और दिल दहला देने वाली रेल दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। बुलेट ट्रेन का स्वागत करने को तैयार भारत अपनी पहले की ट्रेनों की हिफाजत और सकुशल सञ्चालन में आये दिन नाकाम होता है/ये कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारतीय रेल का मुसाफिर जान हथेली पर लेकर सफर करता है क्यूंकि किसे पता शायद ये उसका आखिरी सफर हो/हमारे लिए ये रेल हादसा एक खबर है लेकिन जिन परिवारों ने अपनों को खोया है उनके लिए ये कितना असह्य और पीड़ादायक है इसकी कल्पना मात्र से रूह काँप जाती है।आखिर कब तक इन हादसों में हम अपनों को गंवाते रहेंगे,,कब तक..

क्या सरकार इस मुद्दे पर बेबस है ?क्या रेल मंत्रालय के पास कोई सुरक्षित विकल्प नहीं ?
कहीं रेलवे की लापरवाही और उदासीन रवैय्या तो इसका जिम्मेदार नहीं ?
क्योंकि,,,,,, वक़्त करता है परवरिश,,हादसे यूँ ही नहीं होते

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