प्रयागराज के घाट पर गंगा नदी में लेटे हनुमान जी की मूर्ति का जलमग्न होना आस्था और प्रकृति का संगम माना जाता है, उत्तर प्रदेश के पवित्र शहर प्रयागराज में स्थित प्रसिद्ध “लेटे हनुमान जी” की मूर्ति इस समय गंगा नदी के बढ़ते जलस्तर के कारण पूरी तरह जलमग्न हो गई है। यह दृश्य जहां श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रतीक बना हुआ है, वहीं गंगा नदी में आई जलवृद्धि प्रशासन के लिए चिंता का कारण बन गई है।
- जलमग्न मूर्ति: आस्था का प्रतीक
प्रयागराज के संगम तट पर स्थित लेटे हुए हनुमान जी की मूर्ति, न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्व रखती है। हर साल हजारों श्रद्धालु यहां आकर हनुमान जी के दर्शन करते हैं और गंगा स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब गंगा नदी का जल स्तर बढ़कर हनुमान जी की मूर्ति को ढक लेता है, तो इसे आगामी वर्ष के लिए शुभ संकेत माना जाता है।
इस वर्ष जुलाई के मध्य में हुई भारी वर्षा और पहाड़ों से आए अतिरिक्त जल के कारण गंगा का जलस्तर सामान्य से काफी ऊपर पहुंच गया है। इसके चलते लेटे हनुमान जी की विशाल मूर्ति पूरी तरह पानी में डूब गई है। कई श्रद्धालु इसे हनुमान जी की “जल समाधि” के रूप में देख रहे हैं और इस नज़ारे को ‘चमत्कारी’ मान रहे हैं।
- श्रद्धालुओं की भीड़ और सुरक्षा व्यवस्था
गंगा में मूर्ति के डूबने की खबर फैलते ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु संगम घाट पर पहुंचने लगे हैं। कई लोग जल में उतरकर डूबती मूर्ति के दर्शन करने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ गई है। इस स्थिति को देखते हुए स्थानीय प्रशासन ने घाटों पर पुलिस बल तैनात किया है और सुरक्षा के दृष्टिकोण से कुछ क्षेत्रों में बेरिकेडिंग भी की गई है।
प्रशासन द्वारा नावों से निगरानी बढ़ा दी गई है और लोगों से अपील की गई है कि वे जल में उतरने से बचें और दूर से ही दर्शन करें। जिला अधिकारी ने बताया कि “गंगा के बढ़ते जलस्तर को देखते हुए सभी घाटों पर सतर्कता बरती जा रही है, और सुरक्षा कर्मी लगातार निगरानी में लगे हैं।”

- धार्मिक और पर्यावरणीय संकेत
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गंगा का हनुमान जी को डुबो देना यह संकेत करता है कि वर्षा पर्याप्त हुई है और आने वाले समय में अच्छी फसल और शांति की संभावनाएं हैं। कई साधु-संतों का मानना है कि यह प्रकृति और धर्म का अद्भुत मेल है, जहां जल, देवता और आस्था तीनों एक साथ दिखाई देते हैं।
वहीं, पर्यावरणविदों का कहना है कि यह दृश्य जलवायु परिवर्तन और गंगा तटीय क्षेत्रों की जल प्रबंधन प्रणाली की ओर भी संकेत करता है। यदि यही स्थिति बार-बार उत्पन्न होती है, तो स्थायी समाधान की दिशा में कार्य करना होगा।
- स्थानीय प्रतिक्रिया
स्थानीय निवासी और दुकानदारों का कहना है कि इस दृश्य से एक ओर जहां धार्मिक पर्यटन बढ़ा है, वहीं दूसरी ओर बाढ़ की आशंका के चलते व्यापार पर भी असर पड़ सकता है। कुछ दुकानदारों ने अपनी दुकानों को ऊंचे स्थानों पर अस्थायी रूप से स्थानांतरित कर दिया है। गंगा नदी में डूबे लेटे हनुमान जी की मूर्ति इस समय आस्था, प्रकृति और प्रशासनिक सतर्कता का अद्वितीय संगम प्रस्तुत कर रही है। यह दृश्य जहां एक ओर लोगों की श्रद्धा को बढ़ा रहा है, वहीं जल प्रबंधन और सुरक्षा को लेकर कई अहम सवाल भी खड़े कर रहा है। प्रशासन से लेकर धार्मिक संगठनों तक, सभी को इस घटना से सीख लेकर आने वाले समय के लिए बेहतर व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए।