भारतीय संविधान के शिल्पकार बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की आज 135वीं जयंती हैं। भारत रत्न’ से सम्मानित बाबा साहब नें अपना पूरा जीवन दलित, शोषित, वंचित,समाज और भारत के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उनके विचार व सिद्धांत देशवासियों के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत हैं।

फ्रांसीसी राजनीतिक वैज्ञानिक क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट (Christophe Jaffrelot) के द्वारा लिखी उनकी जीवनी मे एक प्रसंग का जिक्र करते हुए कहा है कि बाबा साहब के पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में सिपाही के पद पर तैनात थे अपने भाई बहन के साथ बाबा साहब ट्रेन से अपने पिता से मिलने के लिए जा रहे थे। ट्रेन से उतरने के बाद आगे का सफर उन्हें तांगे से तय करना था मगर कोई तांगेवाला उनकी जाति के चलते उन्हें ले जाने को तैयार नहीं होता था। एक तैयार हुआ मगर उसने शर्त रखी कि तांगा उन्हें खुद ही हांकना होगा, भीमराव खुद तांगे को हांककर ले गए, रास्ते मे तांगेवालें नें खुद उतरकर एक ढाबे पर भोजन किया, लेकिन बच्चों को अंदर नहीं जाने दिया गया।
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उन्हें पास ही बह रही एक रेतीली धारा से अपनी प्यास बुझानी पड़ी। इस घटना ने बाबा साहब के जीवन पर इतना असर किया कि उन्होंने ठान लिया कि अब समाज से छुआछूत और भेदभाव जैसी कुप्रथाओं को खत्म करना है। जिसके फलस्वरुप बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी एक ऐसे संविधान के शिल्पकार बने जिसेनें सभी को एक समान अधिकार प्रदान किया हैं।