स्मार्ट फोन या मोबाईल अब जरूरत नहीं आफत है.बच्चों का बचपन इसमें खो रहा है…खेलकूद से तो दूरी है ही…बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए भी पूरी तरह से स्मार्टफोन पर निर्भर होते जा रहे हैं.इसी वजह से वो किसी प्रश्न का उत्तर किताबों में ढूढ़ने की जगह गूगल पर ढूढ़ते हैं…
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इस आदत की वजह से बच्चों की किताबें पढ़ने की आदत कम होती जा रही है.स्मार्टफोन की लत की वजह से बच्चे देर रात तक पेरेंट्स से छिपकर स्मार्टफोन में गेम्स खेलते हैं…जिससे उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती.साथ ही उनकी आंखों को भी नुकसान पहुंचता है.बच्चे ज्यादा चिढ़चिढ़े हो जाते हैं…वो अपनी ही दुनिया में मस्त रहते हैं और पेरेंट्स से दूर भागने की कोशिश करते हैं.कई बार ऐसा भी होता है कि स्मार्टफोन से थोड़ी देर बच्चों को दूर रखने पर वो गुस्से में आकर आक्रामक रूप धारण कर लेते हैं.बच्चों के स्वभाव में इस बदलाव का कारण क्या केवल स्मार्टफोन है.या फिर यह पेरेंटिंग की कमी है.
हेल्थ डेस्क. छोटी उम्र के बच्चों के फोन के इस्तेमाल के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। मात्र डेढ़ साल का बच्चा 5 घंटे तक मोबाइल में खोया रहता है। माता-पिता को बच्चे के फोन ज्ञान पर गर्व होता है। लेकिन बच्चे के रोने या किसी तरह की ज़िद करने पर बहलाने के लिए फोन देना उसे इस नई लत का ग़ुलाम बनाने का पहला क़दम है। आई सर्जन डॉ. ओ.पी. अग्रवाल और क्लीनिकल सायकोलॉजिस्ट डॉ. रिपन सिप्पी से जानते हैं सावधानी बरतना क्यों है जरूरी…

10 प्वाइंट्स : क्यों है खतरनाक मोबाइल और क्या करें पेरेंट्स
- आंकड़ों के मुताबिक 12 से 18 महीने की उम्र के बच्चों में स्मार्टफोन के इस्तेमाल की बढ़ोतरी देखी गई है। ये स्क्रीन को आंखों के करीब ले जाते हैं और जिससे आंखों को नुकसान पहुंचता है।
- आंखें सीधे प्रभावित होने से बच्चों को जल्दी चश्मा लगने, आंखों में जलन और सूखापन, थकान जैसी दिक्कतेे हो रही हैं।
- स्मार्टफोन चलाने के दौरान पलकें कम झपकाते हैं। इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहते हैं। माता-पिता ध्यान दें कि स्क्रीन का सामना आधा घंटे से अधिक न हो।
- कम उम्र में स्मार्टफोन की लत की वजह बच्चे सामाजिक तौर पर विकसित नहीं हो पाते हैं। बाहर खेलने न जाने की वजह से उनके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता।
- मनोविशेषज्ञों के पास ऐसे केस भी आते हैं कि बच्चे पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर की तरह ही हरकतें करने लगते हैं। इस कारण उनके दिमागी विकास में बाधा पहुंचती है।
- बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल अधिकतर गेम्स खेलने के लिए करते हैं। वे भावनात्मक रूप से कमज़ोर होते जाते हैं ऐसे में हिंसक गेम्स बच्चों में आक्रामकता को बढ़ावा देते हैं।
- बच्चे अक्सर फोन में गेम खेलते या कार्टून देखते हुए खाना खाते हैं। इसलिए वे जरूरत से अधिक या कम भोजन करते हैं। अधिक समय तक ऐसा करने से उनमें मोटापे की आशंका बढ़ जाती है।
- फोन के अधिक इस्तेमाल से वे बाहरी दुनिया से संपर्क करने में कतराते हैं। जब उनकी यह आदत बदलने की कोशिश की जाती है तो वो चिड़चिड़े, आक्रामक और कुंठाग्रस्त हो जाते हैं।
- माता-पिता एक राय रखें। यदि मोबाइल या किसी और चीज़ के लिए मां ने मना किया है तो पिता भी मना करें। वरना बच्चे यह जान जाते हैं कि किससे परमिशन मिल सकती है।
- बच्चों का इमोशनल ड्रामा सहन न करें। अपने जवाब या राय में निरंतरता रखें। एक दिन ‘न’ और दूसरे दिन ‘हां’ न कहें। रोने लगें तो ध्यान न दें। बाद में प्यार से समझाएं।
- इंटरनेट पर कुछ अच्छा और ज्ञानवर्धक है तो उसे दिखाने के लिए समय तय निर्धारित करें और साथ बैठकर देखें। स्मार्ट टीवी का इस्तेमाल कर सकते हैं इससे आंखों और स्क्रीन के बीच दूरी भी बनी रहेगी।